कैसे हुआ फर्जीवाड़ा
डॉ. ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव ने अपनी तहरीर में बताया कि उनका कार्यालय अशोक मार्ग स्थित नवचेतना केंद्र बिल्डिंग में है। आयुष्मान योजना के तहत प्रदेश के विभिन्न अस्पतालों को लाभार्थियों के उपचार से संबंधित भुगतान राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकारण पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन किया जाता है। इस प्रक्रिया में अस्पताल पहले पोर्टल पर उपचार से संबंधित दावा अपलोड करते हैं। इसके बाद पहला स्तर स्टेट एजेंसी और फिर चयनित इंश्योरेंस सर्विस एजेंसी (आईएसए) द्वारा विश्लेषण और सिफारिश के लिए दावों को मेडिकल ऑडिटर के लॉगिन पर भेजा जाता है। मेडिकल ऑडिटर के अनुमोदन के बाद लेखाधिकारी/प्रबंधक वित्त के लॉगिन से दावों को आगे बढ़ाया जाता है। अंत में मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) के लॉगिन से अंतिम मंजूरी के बाद बैंक के माध्यम से संबंधित चिकित्सालयों को भुगतान किया जाता है।
कब हुआ घोटाला
एक मई से 22 मई 2025 के बीच इस फर्जी भुगतान की जानकारी मिली। जांच में पाया गया कि इस अवधि में 6239 फर्जी लाभार्थियों के नाम से प्रदेश के 39 निजी अस्पतालों को करोड़ों रुपये का भुगतान कर दिया गया।
आईडी हैक या अंदरूनी मिलीभगत
जांच में सामने आया कि लेखाधिकारी, वित्त प्रबंधक और सीईओ की लॉगिन आईडी का दुरुपयोग कर यह फर्जीवाड़ा किया गया। सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि एजेंसी के किसी भी कर्मचारी द्वारा इन फर्जी दावों पर कोई प्रोसेसिंग नहीं की गई थी, फिर भी भुगतान हो गया। इससे आशंका जताई जा रही है कि या तो लॉगिन आईडी हैक की गईं या फिर भीतर के किसी कर्मचारी की मिलीभगत से लॉगिन एक्सेस का दुरुपयोग हुआ। रात में हुआ बड़ा खेल
जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि अधिकतर फर्जी भुगतान रात के समय किए गए। आमतौर पर दिन में जब ऑफिस स्टाफ और पर्यवेक्षक सक्रिय रहते हैं तो भुगतान प्रक्रियाएं पारदर्शिता के साथ चलती हैं। रात के समय ऐसे फर्जीवाड़े को अंजाम देना सुनियोजित साजिश की ओर इशारा करता है।
9.94 करोड़ रुपये की हेराफेरी
फर्जी भुगतान में कुल 9 करोड़ 94 लाख 13 हजार 386 रुपये की अनियमितता पाई गई है। यह राशि प्रदेश के 39 चिकित्सालयों को बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए ट्रांसफर कर दी गई।
हाई प्रोफाइल जांच की जरूरत
यह मामला राज्य के स्वास्थ्य विभाग, स्टेट एजेंसी साचीज और राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकारण की साइबर सुरक्षा और प्रक्रिया निगरानी पर गंभीर सवाल खड़े करता है। अब यह देखना होगा कि किस तरह तीन उच्चाधिकारियों की आईडी का दुरुपयोग हुआ। क्या सिस्टम में पहले से कोई बैक डोर एक्सेस मौजूद था। क्या यह पूरा मामला हैकिंग का है या अंदरूनी कर्मचारियों की मिलीभगत का। एफआईआर दर्ज, जांच शुरू
फिलहाल हजरतगंज कोतवाली में मुकदमा दर्ज हो चुका है। डीसीपी सेंट्रल ने बताया कि मामले की साइबर सेल के साथ मिलकर जांच की जा रही है।
- जल्द ही:
- सर्वर लॉग्स
- आईपी एड्रेस ट्रेसिंग
- लॉगिन टाइम्स
- अस्पतालों के बैंक खातों की जांच शुरू कर दी जाएगी।
आईएसए की भूमिका पर भी सवाल
इस मामले में इंश्योरेंस सर्विस एजेंसी (ISA) की भूमिका भी संदिग्ध नजर आ रही है। ISA को मेडिकल ऑडिट और सिफारिश का काम दिया गया है। अगर उनकी ओर से बिना उचित समीक्षा के दावों को पास किया गया तो उनकी सांठगांठ या लापरवाही भी सामने आ सकती है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया
मामले के सामने आने के बाद विपक्षी दलों ने इस पर सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। विपक्षी नेताओं ने सवाल उठाया है कि इतनी बड़ी रकम का फर्जीवाड़ा सरकार की निगरानी विफलता का प्रमाण है। अब तक की कार्रवाई
- एफआईआर दर्ज
- साइबर सेल जांच शुरू
- संबंधित 39 अस्पतालों के बैंक खातों को चिन्हित कर फ्रीज करने की प्रक्रिया शुरू
- सीईओ, लेखाधिकारी और वित्त प्रबंधक की लॉगिन आईडी सस्पेंड
- अस्पतालों को नोटिस भेजे गए
- फिलहाल स्टेट एजेंसी साचीज की ओर से कहा गया है कि पूरे मामले को शीघ्र सुलझाने के लिए सभी संबंधित विभागों के साथ समन्वय बनाकर तीव्र जांच की जा रही है।