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वाराणसी नगर निगम दे रहा है 500 रुपये का इनाम, बस करना होगा ये काम इस अवसर पर हल और ट्रैक्टरों को टीका लगाकर खेत में ले जाने की रस्म अदा की गई। गांव के बुजुर्गों ने बताया कि पहले बैलों को सजाकर पूजा की जाती थी, अब यंत्रों ने भले ही स्थान ले लिया हो, लेकिन श्रद्धा और परंपरा में कोई कमी नहीं आई है। परंपरा के अनुसार पूजा के बाद सभी किसानों के बीच प्रसाद स्वरूप बताशे बांटे गए।
शुभ मुहूर्त में पूजा संपन्न
आचार्यों द्वारा शुभ मुहूर्त में पूजा संपन्न कराई गई, जिसमें पारंपरिक मंगल गीतों के साथ वर्षा की कामना की गई। इस आयोजन ने यह स्पष्ट किया कि कृषि आधारित समाज में प्रकृति और देवताओं के प्रति आस्था आज भी उतनी ही मजबूत है जितनी वर्षों पहले थी। यह आयोजन सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रकृति और मानव के सह-अस्तित्व का प्रतीक है। किसान मानते हैं कि ऐसी पूजा से न सिर्फ मौसम अनुकूल रहता है बल्कि खेतों में बेहतर उत्पादन भी होता है।