Raksha Bandhan 2025 : राजस्थान में इस जगह 734 वर्षों से कलाइयां हैं सूनी, नहीं मनाते रक्षाबंधन, वजह जानकर कांप जाएंगे
Raksha Bandhan 2025 : रक्षाबंधन का त्योहार आज धूमधाम से मनाया जा रहा है। पर राजस्थान में एक जगह है जहां 734 वर्षों से रक्षाबंधन नहीं मनाते हैं। जानें क्या है वजह?
पाली स्थित शहीद स्मारक- धौला चोतरा। फाइल फोटो पत्रिका
Raksha Bandhan 2025 : जैसलमेर. नौ मण तोल जनेउ उतरी, चूड़ा मण चौरासी। पाली का यह धौला चौतरा है घटना का साक्षी….। पालीवाल ब्राह्मण समाज के लिए रक्षाबंधन का दिन त्योहार न होकर बलिदान और शोक का प्रतीक है। करीब 734 वर्ष पहले श्रावणी पूर्णिमा के दिन पाली में हुए नरसंहार की स्मृति आज भी समाज की मौजूदा पीढ़ी में जिंदा है।
इसी दिन से पालीवाल ब्राह्मणों ने रक्षा बंधन मनाना बंद कर दिया और इसे पूर्वजों की स्मृति में तर्पण दिवस के रूप में मनाने लगे। गौरतलब है कि पालीवाल ब्राह्मण मूल रूप से पाली, मारवाड़ के श्री आदि गौड़ ब्राह्मण हैं, जो विक्रम संवत 534 में पाली में आकर बसे। यहां इनकी आबादी एक लाख के करीब थी। सहकार की भावना इतनी प्रबल थी कि पाली में आने वाले हर ब्राह्मण को प्रत्येक घर से एक ईंट और एक रुपए का सहयोग देकर बसाया जाता था। ब्राह्मण होते हुए भी व्यापार में दक्ष थे और राठौड़ वंश की मारवाड़ में स्थापना का श्रेय भी इन्हीं को जाता है।
जलालुद्दीन खिलजी ने किया था आक्रमण
विक्रम संवत 1347, सन 1291 में दिल्ली के सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने पाली की समृद्धि देखकर आक्रमण किया। उस समय पालीवाल ब्राह्मण परम्परा के अनुसार लाखोटिया और लोहड़िया तालाब पर श्रावणी उपाकर्म और तर्पण कर रहे थे। आक्रमण के दौरान हजारों ब्राह्मण वीरगति को प्राप्त हुए। तालाबों का पानी गोवंश की हत्या से अपवित्र किया गया। राठौड़ शासक राव सीहा के पुत्र आस्थान भी इन्हीं की रक्षा करते हुए शहीद हुए।
बलिदान की अमिट याद
हत्याकांड के बाद 9 मण जनेऊ और 84 मण हाथीदांत की चूड़ियां धौला चौतरा में दफन की गईं। यह स्थल आज भी घटना का साक्षी है। पालीवाल ब्राह्मणों ने उसी दिन पाली का सामूहिक त्याग कर दिया। बड़ी संख्या में लोग जैसलमेर रियासत में आकर बस गए और कुलधरा-खाभा सहित 84 गांव बसाए।
पाली स्थित शहीद स्मारक – धौला चोतरा। फाइल फोटो पत्रिका
आज भी निभा रहे परंपरा
राजस्थान पालीवाल समाज के उपाध्यक्ष ऋषिदत्त पालीवाल बताते हैं, श्रावणी पूर्णिमा पर पालीवाल समाज रक्षा बंधन नहीं मनाता, बल्कि तालाबों पर तर्पण कर पूर्वजों को स्मरण करता है। पाली में करोड़ों की लागत से विकसित पालीवाल धाम पर देशभर से समाजजन आकर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
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