Rajasthan Politics: राजस्थान की सियासत में इन दिनों पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बढ़ती सक्रियता चर्चा का केंद्र बनी हुई है। विधानसभा चुनाव में हार और पार्टी में कोई बड़ी औपचारिक जिम्मेदारी न होने के बावजूद गहलोत लगातार प्रदेश के दौरे कर रहे हैं, जनसभाओं को संबोधित कर रहे हैं, प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं और सोशल मीडिया के जरिए भजनलाल सरकार पर निशाना साध रहे हैं।
उनकी यह सक्रियता कई सवाल खड़े कर रही है। क्या गहलोत अपनी पुरानी सियासी जमीन को मजबूत कर रहे हैं? क्या वे कांग्रेस में कोई नई भूमिका की तैयारी में हैं? या फिर यह उनकी जनता से जुड़ाव की वही पुरानी शैली है? बीकानेर में पत्रकारों से बातचीत में गहलोत ने इन सवालों का जवाब दिया और कई अहम संकेत दिए।
NSUI के समय से सक्रिय हूं- गहलोत
गहलोत ने अपनी सक्रियता पर उठ रहे सवालों को साफ करते हुए कहा कि देखिए भाई साहब, आप पत्रकार लोग जानते होंगे, सीनियर लोग भी जानते हैं। जब से मैंने NSUI से राजनीति शुरू की, उस दिन से आज तक मैं हमेशा सक्रिय रहा हूं। चाहे सत्ता में रहा हो या नहीं, यह मेरी फितरत है। जनता की सेवा करना, उनकी समस्याएं सुनना और हरसंभव प्रयास करना, यह मेरी आदत है।
उन्होंने बताया कि सत्ता में रहें या न रहें, जनता से उनका संपर्क कभी टूटा नहीं। अशोक गहलोत ने बताया कि आज भी जयपुर में मेरे घर पर हर दिन 100-200 लोग आते हैं। वे इसलिए आते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि मैं उनकी बात सुनूंगा और समझूंगा।
गहलोत ने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी सक्रियता के पीछे कोई बेचैनी नहीं है। कांग्रेस में बेचैनी क्यों होगी? प्रदेश कांग्रेस कमेटी हो या बीजेपी, उन्हें खुशी होनी चाहिए कि उनके नेता सक्रिय हैं। इसमें क्या बात है? उन्होंने कहा कि उनकी सक्रियता को बेवजह तूल दिया जा रहा है, जबकि यह उनका स्वाभाविक रवैया है।
सोशल मीडिया पर गहलोत की धमक
राजस्थान में कांग्रेस नेताओं में गहलोत की सोशल मीडिया उपस्थिति सबसे प्रभावशाली है। रोजाना उनकी पोस्ट्स, चाहे वह भजनलाल सरकार की नीतियों पर हमला हो या जनता से मुलाकात के वीडियो, चर्चा का विषय बन रही हैं। गहलोत न केवल सरकार की कमियों को उजागर कर रहे हैं, बल्कि कार्यकर्ताओं और जनता के बीच अपनी पहुंच को भी मजबूत कर रहे हैं। उनकी यह सक्रियता न सिर्फ कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भर रही है, बल्कि विपक्षी खेमे में भी हलचल मचा रही है।
गुटबाजी के सवाल पर करारा जवाब
कांग्रेस में गुटबाजी और मतभेद की अटकलों पर गहलोत ने पत्रकारों को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि मैं मीडिया वालों से कहना चाहूंगा, कृपया हम पर कृपा रखें। कोई दूरी नहीं है, सब समाप्त हो चुकी है। अगर अब आप लोग गुटबाजी की बात करेंगे, तो मैं समझूंगा कि यह मीडिया की उपज है। हमारे हिसाब से कोई मतभेद नहीं, कोई गुटबाजी नहीं।
उन्होंने कहा कि राजस्थान कांग्रेस में एकजुटता है और अगर गुटबाजी की बात उठती है, तो इसके लिए मीडिया जिम्मेदार होगा। बीकानेर में उनके पोस्टर न लगने की बात पर भी गहलोत ने हल्के-फुल्के अंदाज में जवाब दिया। यह छोटी-मोटी बातें छोड़ो। कई जगह मेरे पोस्टर नहीं लगते, तो क्या फर्क पड़ता है? जिंदगी भर इतने पोस्टर लग चुके हैं। कोई कार्यकर्ता किसी का फोटो लगा दे, किसी का नहीं लगाए, मैं इन बातों में नहीं पड़ता।
यहां देखें वीडियो-
मानेसर कांड- पुरानी बातें भूलना जरूरी
2023 में मानेसर में हुए सियासी ड्रामे, जब गहलोत और सचिन पायलट के बीच तनातनी की खबरें सुर्खियों में थीं, उसका जिक्र होने पर गहलोत ने कहा कि हर घटनाक्रम को याद रखूं, तो दूसरा काम कैसे करूं? पुरानी बातें भूलनी पड़ती हैं। सबको मिलकर आगे बढ़ना होता है।
उन्होंने कार्यकर्ताओं को संदेश देते हुए कहा कि देशहित में एकजुटता जरूरी है। देश को कांग्रेस की जरूरत है। कांग्रेस को मजबूत करना हम सबका फर्ज है। मतभेद भूलकर हमें पार्टी को आगे बढ़ाना है, तभी हम देश और लोकतंत्र को बचा पाएंगे।
गहलोत की सक्रियता के क्या है मायने?
गहलोत की यह सक्रियता कई संदेश दे रही है। पहला, वे कांग्रेस के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक हैं और कार्यकर्ताओं के बीच उनकी पकड़ अभी भी मजबूत है। दूसरा, वे 2028 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी को मजबूत करने की कोशिश में हैं। तीसरा, उनकी सक्रियता से यह भी संकेत मिल रहा है कि वे राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस में कोई बड़ी भूमिका निभाने की तैयारी कर सकते हैं।
हालांकि, गहलोत खुद इसे अपनी फितरत और जनता से जुड़ाव का हिस्सा बता रहे हैं, लेकिन सियासी गलियारों में इसे 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन और भजनलाल सरकार की कथित कमियों को भुनाने की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है।
हालांकि, सवाल यह भी है कि क्या उनकी यह सक्रियता सचिन पायलट जैसे युवा नेताओं के साथ तालमेल बनाकर चलेगी? गहलोत ने गुटबाजी की बात को खारिज किया है, लेकिन कार्यकर्ताओं के बीच एकजुटता बनाए रखना उनके लिए चुनौती होगा। साथ ही, गहलोत की यह सक्रियता न केवल राजस्थान, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है। फिलहाल, गहलोत का संदेश साफ है- वे न तो रुकने वाले हैं, न ही सियासी मैदान छोड़ने वाले हैं।
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