संस्कृत शिक्षा विभाग की आयुक्त प्रियंका जोधावत ने बताया कि इस सम्मान के लिए राज्यभर से योग्य संस्कृत विद्वानों, शिक्षकों और कर्मियों के प्रस्ताव आमंत्रित किए गए हैं। प्रस्तावों के साथ विद्वान का संक्षिप्त परिचय भी निर्धारित प्रारूप में मांगा गया है। इच्छुक अभ्यर्थी 15 जुलाई 2025 तक अपने प्रस्ताव डाक/व्यक्तिगत रूप से अथवा ईमेल (dir-sans-rj@nic.in) पर भेज सकते हैं।
ये हैं सम्मान के प्रमुख मानदण्ड:
पुरस्कार के लिए निम्नलिखित कार्यक्षेत्रों में शैक्षणिक अर्हता एवं विशेष दक्षता रखने वाले, उल्लेखनीय साहित्यसर्जन करने वाले, समाज में संस्कृत शिक्षा और उसके शिक्षण की प्रतिष्ठा के लिए प्रशंसनीय-सेवा करने वाले तथा संस्कृत के प्रचार-प्रसार, विकास और विस्तार के लिए सचेत, सजग और समर्पित उन संस्कृत-शिक्षाविदों, विद्वानों एवं संस्कृत कर्मियों को चुना जायेगा।
1. जिन्होंने परम्परागत वेदपाठ का अभ्यास कर अथवा छात्रों को सस्वर वेद संहिताओं का अध्यापन कर अथवा वेद-भाष्यों के अनुशीलन, उपनिषदों के अध्ययन तथा अन्य वैदिक वाङ्मय के विवेचन का कार्य कर वैदिक वाङ्मय की सेवा की है।
2. जो शास्त्रीय-परम्पराओं के अध्येता होने के साथ-साथ, शास्त्र-विशेष के अधिकृत विद्वान हों। 3. जिन्होंने संस्कृत वाङ्मय के विभिन्न अंगों, किसी अंग/ उपांग में अन्तर्निहित गूढ-ज्ञान के प्रकाशन द्वारा संस्कृत वाङ्मय की श्रीवृद्धि की हो।
4. जिन्होंने संस्कृत अध्ययन-अध्यापन एव प्रशिक्षण पद्धतियों में नवाचार का प्रयोग कर इस क्षेत्र में साहित्य-सर्जन किया हो। 5. जिन्होंने उच्चस्तर की शिक्षण एवं प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना एवं संचालन कर संस्कृत-शिक्षा की विशिष्ट-पहचान बनाई हो।
6. जिन्होंने संस्कृत वाङ्मय को आधार बनाकर अनुसंधान, तुलनात्मक अध्ययन या शोधात्मक सेवा द्वारा अन्वेषण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर संस्कृत वाङ्मय की सेवा की हो एवं संस्कृत में निहित ज्ञान-विज्ञान को प्रकाशित एवं प्रचारित किया हो।
7. जिन्होंने सम-सामयिक, सामाजिक, आध्यात्मिक एव सांस्कृतिक मूल्यों के परिप्रेक्ष्य संस्कृत – वाङ्मय के महत्व में योगदान कर सापेक्ष्य रूप से रचनाओं का लेखन आदि का प्रसारण कर जान संचार माध्यमों के द्वारा संस्कृत को जन जन तक पहुंचाने में विशिष्ट उल्लेखनीय भूमिका का निर्वाह किया हो।
8. जिन्होंने संस्कृत-भाषा के व्याकरण तथा उसकी वैज्ञानिकता, उत्कृष्टता एवं विशालता के बारे में युक्तियुक्त-विश्लेषण कर देववाणी के तात्पर्य की पृष्ठभूमि एवं सार्थकता प्रमाणित करने के लिए लेखन या प्रचार-माध्यमों द्वारा महत्त्वपूर्ण योगदान किया हो।
सम्मानार्थ चुने जाने वाले योग्य-विद्वानों के लिए किसी एक मानदण्ड के अन्तर्गत पात्र पाया जाना पर्याप्त होगा तथा परम्परागत शैली एवं आधुनिक शैली दोनों प्रवृत्तियों के विद्वान इसके लिये पात्र होंगे।