मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दोषी की सजा को रद्द कर उसे जेल की बजाय किशोर न्याय बोर्ड (JJB) के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया। अब दोषी को अधिकतम तीन साल के लिए विशेष सुधार गृह भेजा जा सकता है।
अपराध के समय आरोपी नाबालिग था
दरअसल, यह मामला 17 नवंबर, 1988 का है। इस दौरान अजमेर में एक नाबालिग लड़की से बलात्कार हुआ था। उस समय आरोपी की उम्र 16 वर्ष, 2 महीने और 3 दिन थी। सुप्रीम कोर्ट ने जांच के बाद पाया कि अपराध के समय आरोपी नाबालिग था। कोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय (बालकों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2000 के प्रावधान लागू होंगे। पीठ ने स्पष्ट किया कि नाबालिग होने का दावा किसी भी अदालत में और किसी भी स्तर पर, यहां तक कि मामले के निपटारे के बाद भी उठाया जा सकता है।
2024 में आया था हाईकोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला राजस्थान हाईकोर्ट के जुलाई 2024 के उस निर्णय के खिलाफ अपील पर आया, जिसमें निचली अदालत द्वारा दी गई दोषसिद्धि और पांच साल की सजा को बरकरार रखा गया था। दोषी के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में अभियोजन पक्ष के मामले में विसंगतियों का हवाला देते हुए दलील दी कि अपराध के समय उनका मुवक्किल नाबालिग था। कोर्ट ने अजमेर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश को आरोपी की उम्र की जांच करने का निर्देश दिया था। जांच रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि अपराध के समय आरोपी किशोर था, जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने सजा रद्द कर दी।
हाईकोर्ट द्वारा दी गई सजा टिकाऊ नहीं
पीठ ने कहा कि निचली अदालत और हाईकोर्ट द्वारा दी गई सजा टिकाऊ नहीं है, क्योंकि अपराध के समय आरोपी नाबालिग था। कोर्ट ने मामले को किशोर न्याय बोर्ड को भेजते हुए निर्देश दिया कि अधिनियम की धारा 15 और 16 के तहत उचित कार्रवाई की जाए। दोषी को 15 सितंबर, 2025 को बोर्ड के समक्ष पेश होने का आदेश दिया गया है। कोर्ट ने राज्य सरकार की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों के तहत नाबालिग होने का दावा मान्य है।