scriptक्या राजस्थान में होंगे छात्रसंघ चुनाव? धनबल-बाहुबल के बजाय बढ़ी क्रिएटीविटी, अब युवाओं में जगी नई उम्मीद | Student union elections in Rajasthan new wave of creativity challenge to money and muscle power | Patrika News
जयपुर

क्या राजस्थान में होंगे छात्रसंघ चुनाव? धनबल-बाहुबल के बजाय बढ़ी क्रिएटीविटी, अब युवाओं में जगी नई उम्मीद

Student Union Elections in Rajasthan: राजस्थान में छात्र राजनीति एक गंभीर दौर से गुजर रही है। पिछले दो वर्षों से राज्य के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में छात्रसंघ चुनाव नहीं हुए हैं।

जयपुरJul 18, 2025 / 07:34 pm

Nirmal Pareek

Student union elections in Rajasthan

(राजस्थान पत्रिका फोटो)

Student Union Elections in Rajasthan: राजस्थान में छात्र राजनीति एक गंभीर दौर से गुजर रही है। पिछले दो वर्षों से राज्य के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में छात्रसंघ चुनाव नहीं हुए हैं और यह स्पष्ट नहीं है कि ये चुनाव कब बहाल होंगे। इस अनिश्चितता के बीच, राजस्थान विश्वविद्यालय (RU) में हाल ही में हुए दो क्रिएटिव विरोध प्रदर्शनों ने छात्र राजनीति में नई आशा जगाई है।
बता दें,ये प्रदर्शन न केवल छात्रसंघ चुनावों की बहाली की मांग को रचनात्मक ढंग से उठा रहे हैं, बल्कि धनबल और बाहुबल पर आधारित पारंपरिक कैंपस राजनीति को भी चुनौती दे रहे हैं।

क्रिएटीविटी V/S धनबल और बाहुबल

बताते चलें कि राजस्थान में पिछले कई वर्षों से मुख्यधारा की राजनीति की तरह छात्र राजनीति भी धनबल और बाहुबल के प्रभाव में रही है। स्कॉर्पियो, फॉर्च्यूनर और डिफेंडर जैसी महंगी गाड़ियों की रैलियां, भारी-भरकम खर्च और अनैतिक प्रथाएं जैसे महंगे उपहार बांटना, शराब परोसना और वोटरों को प्रभावित करना, कैंपस की राजनीति का हिस्सा बन गए थे। कुछ छात्र नेताओं पर जमीन बेचकर धनबल के साथ चुनाव लड़ने के भी आरोप लगे। वहीं, कुछ पर विश्वविद्यालय की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के भी आरोप लगे। इसके चलते छात्रसंघ चुनावों को 2023 में रोक दिया गया।
हालांकि, हाल के दो प्रदर्शनों ने इस धारणा को तोड़ने का प्रयास किया है कि छात्र राजनीति केवल शक्ति प्रदर्शन और धन के दम पर चलती है। ये प्रदर्शन न केवल रचनात्मक थे, बल्कि उन्होंने छात्रों के बीच वैचारिक और मुद्दों पर आधारित राजनीति की संभावनाओं को भी उजागर किया।

छात्रसंघ चुनावों पर क्यों लगी थी रोक?

दरअसल, 2023 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने छात्रसंघ चुनावों पर रोक लगाई थी। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तर्क दिया था कि छात्रसंघ चुनावों में अत्यधिक धन खर्च और लिंगदोह समिति के नियमों का उल्लंघन हो रहा था। उन्होंने कहा था कि ये चुनाव विधानसभा या लोकसभा चुनावों की तरह हो गए हैं, जहां उम्मीदवार भारी मात्रा में पैसा खर्च करते हैं। इसके अलावा, विश्वविद्यालयों के कुलपतियों ने हिंसा और धन के दुरुपयोग की चिंताओं को भी कारण बताया था। हांलाकि अशोक गहलोत ने अब इस मांग का समर्थन किया है।
अशोक गहलोत की एक्स पोस्ट

विपक्षी भाजपा ने इसे कांग्रेस की गलत रणनीति करार दिया था। कहा गया था कि तत्कालीन सरकार का मकसद विधानसभा चुनावों से पहले संभावित हार को टालना था। हालांकि, 2023 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद भी छात्रसंघ चुनाव बहाल नहीं हुए। इसकी वजह से छात्रों में असंतोष बना हुआ है। छात्र नेताओं का कहना है कि सरकार का यह फैसला युवाओं को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से वंचित कर रहा है।

आरयू में लोकतंत्र की प्रतीकात्मक विदाई

एनएसयूआई नेता अभिषेक चौधरी ने एक और रचनात्मक प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर में एक पुरानी एंबेसडर कार में ‘लोकतंत्र की विदाई’ का प्रतीकात्मक प्रदर्शन किया। चौधरी ने तर्क दिया कि छात्रसंघ चुनावों पर रोक लगाकर सरकार ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर किया है।
आरयू में प्रदर्शन
राजस्थान पत्रिका से बातचीत में उन्होंने कहा कि छात्रसंघ चुनाव युवाओं को लोकतंत्र से जोड़ने का पहला कदम हैं। सरकार का यह अलोकतांत्रिक रवैया छात्रों के अधिकारों का हनन है। अभिषेक चौधरी ने जोर देकर कहा कि छात्रसंघ चुनावों में धनबल और बाहुबल का आरोप लगाने वाले नेता पहले अपनी राजनीति पर ध्यान दें, जहां निर्वाचित प्रतिनिधियों को भी खरीदा जाता है। उन्होंने दावा किया कि विश्वविद्यालयों के शिक्षित मतदाता रचनात्मकता और मुद्दों पर आधारित नेतृत्व को ही समर्थन देते हैं।
आरयू में प्रदर्शन

नेताओं के कटआउट्स के साथ विरोध

छात्र नेता शुभम रेवाड़ ने राजस्थान विश्वविद्यालय में एक अनोखा प्रदर्शन आयोजित किया। उन्होंने उन पूर्व छात्रसंघ अध्यक्षों के कटआउट्स प्रदर्शित किए, जो बाद में मुख्यधारा की राजनीति में बड़े पदों पर पहुंचे। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, नगौर सांसद हनुमान बेनीवाल, और अन्य नेता शामिल थे।
आरयू में प्रदर्शन
इस प्रदर्शन का उद्देश्य यह दिखाना था कि छात्रसंघ चुनाव युवाओं के लिए राजनीति की नींव रखते हैं और लोकतंत्र को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रदर्शन को पूरे राजस्थान में व्यापक समर्थन मिला। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित विपक्ष के कई नेताओं ने भी इसे समर्थन देते हुए कहा कि छात्रसंघ चुनाव लोकतंत्र की बुनियाद हैं।
आरयू में प्रदर्शन

छात्र राजनीति में बढ़ता जाति का प्रभाव

राजस्थान विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनावों में जाति और क्षेत्रीय समूहों की राजनीति का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। कई छात्र नेता मुद्दों पर आधारित राजनीति के बजाय विशिष्ट जाति समूहों से अपील करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। यह प्रवृत्ति मुख्यधारा की राजनीति से प्रेरित है, जहां जाति एक प्रमुख कारक है। इसके चलते, छात्रों की वास्तविक समस्याएं जैसे शुल्क वृद्धि, प्लेसमेंट, और कैंपस सुविधाएं पृष्ठभूमि में चली जाती हैं।

RU के पोस्ट डॉक्टरल फेलो की राय

राजस्थान यूनिवर्सिटी में पोस्ट डॉक्टरल फेलो डॉ सज्जन कुमार सैनी का कहना है कि वर्तमान में छात्रसंघ चुनाव नहीं होने से छात्र नेता धरने प्रदर्शन करने के तरीके भी बदल रहे हैं। अब पैसा खर्च करने की बजाय रचनात्मक तरीके से एक्टिविटी करके धरने प्रदर्शन कर रहे हैं। अपनी मांग प्रशासन के सामने रख रहे हैं, इसलिए छात्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए छात्रसंघ चुनाव बहुत जरूरी हैं।
उन्होंने कहा कि अगर छात्र प्रतिनिधि होगा तो प्रशासन भ्रष्टाचार नहीं कर पाएगा, कैंपस के इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार आएगा, प्रशासन मनमर्जी नहीं कर पाएगा, मजबूती से छात्रों की बात को सुना जाएगा, छात्रसंघ चुनाव करवाने की फीस एडमिशन के समय आम छात्रों ली जा रही है इसलिए छात्रसंघ चुनाव होने चाहिए।

छात्रसंघ चुनावों को लेकर छात्र नेताओं की राय

एनएसयूआई नेता अभिषेक चौधरी ने राजस्थान में छात्रसंघ चुनावों पर लगी रोक की कड़ी आलोचना की। उन्होंने राजस्थान पत्रिका से बातचीत में कहा कि सरकारें छात्रों को लोकतंत्र से वंचित कर रही हैं, जो अलोकतांत्रिक प्रवृत्तियों को बढ़ावा देता है। चौधरी ने बताया कि रैली, हड़ताल और सांकेतिक प्रदर्शनों के जरिए वे सरकार को जगाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन सरकार का रवैया अलोकतांत्रिक है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि छात्रसंघ चुनाव बहाल करने के लिए वे हर कीमत चुकाने को तैयार हैं। चौधरी ने सरकार के धनबल और बाहुबल के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि विश्वविद्यालय के उच्च शिक्षित मतदाता रचनात्मकता और मुद्दों पर आधारित नेतृत्व को चुनते हैं। उन्होंने नेताओं से अपनी राजनीति पर सवाल उठाने को कहा, जहां निर्वाचित प्रतिनिधियों को खरीदा जाता है।
वहीं, एबीवीपी के केंद्रीय कार्य समिति सदस्य भारत भूषण यादव ने कहा कि छात्रसंघ चुनावों को जल्द शुरू करना चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी चिंता जताई कि कुछ छात्र नेता केवल सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं और जमीनी स्तर पर संघर्ष कम करते हैं। उन्होंने कहा कि कई छात्र नेता बड़े नेताओं के टूलकिट बनकर काम कर रहे हैं, जो छात्र राजनीति की गरिमा को कम करता है।
छात्रनेता शुभम रेवाड़ ने कहा कि राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव लंबे समय से बंद हैं, जो कि लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए चिंता का विषय है। छात्रसंघ लोकतंत्र की प्रयोगशाला होते हैं और यही मंच युवाओं को नेतृत्व, संवाद और ज़िम्मेदारी का पहला मौका देता है। छात्रनेता अब बाहुबल-धनबल के बजाय अब क्रिएटिव कैंपेन और नए-नए प्रयोगों के जरिए अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं। यह बदलाव उम्मीद जगाता है। सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन को चाहिए कि चुनावों की जल्द घोषणा करें ताकि यह ऊर्जा और रचनात्मकता सही दिशा में लगे और लोकतांत्रिक प्रक्रिया मजबूत हो।

Hindi News / Jaipur / क्या राजस्थान में होंगे छात्रसंघ चुनाव? धनबल-बाहुबल के बजाय बढ़ी क्रिएटीविटी, अब युवाओं में जगी नई उम्मीद

ट्रेंडिंग वीडियो