Rajasthan: ‘रणथंभौर रह्यो तो राज रह्यो’ बाघों से नहीं छूट रहा किला, जानें, क्यों बना संघर्ष का केंद्र
रणथंभौर का किला, गणेश मंदिर और आसपास का इलाका कभी बाघों के लिए शांत क्षेत्र माना जाता था, वह अब टकराव का केंद्र बनता जा रहा है। बाघों के हमले में पिछले दो महीने में तीन लोगों की जान जा चुकी है।
देवेंद्र राठौड़ राजस्थान की ऐतिहासिक कहावत ‘रणथंभौर रह्यो तो राज रह्यो’ आज के परिप्रेक्ष्य में बिल्कुल सटीक बैठ रही है। इस बार चुनौती मुगलों या राजाओं से नहीं, बल्कि जंगल के शिकारी बाघों से है। दरअसल रणथंभौर का किला, गणेश मंदिर और आसपास का इलाका कभी बाघों के लिए शांत क्षेत्र माना जाता था, वह अब टकराव का केंद्र बनता जा रहा है। बाघों के हमले में पिछले दो महीने में तीन लोगों की जान जा चुकी है। स्थानीय लोग मानते हैं कि यह महज संयोग नहीं, बल्कि पर्यावरण में असंतुलन और मानवीय दखल का नतीजा है।
रणथंभौर स्थित त्रिनेत्र गणेश मंदिर वर्षों से श्रद्धा का केंद्र रहा है। किंवदंती है कि इस मंदिर की रक्षा स्वयं बाघ करते हैं, लेकिन सात-आठ महीने पहले यहां जीर्णोद्धार के नाम पर हुई तोड़फोड़ ने नई बहस छेड़ दी। लोगों का मानना है कि इससे धार्मिक, पर्यावरणीय और आध्यात्मिक संतुलन बिगड़ा, जिसके बाद से बाघों के हमले बढ़ने लगे हैं। पर्यटन और धार्मिक गतिविधियां भी बड़ा संकट: टाइगर रिजर्व के क्रिटिकल हैबिटेट में 352 धार्मिक स्थल हैं, जहां हर साल 22 लाख से ज्यादा श्रद्धालु आते हैं। इससे ध्वनि प्रदूषण, प्लास्टिक और इंसानी हलचल बढ़ गई है।
युवा बाघों में संघर्ष, कईयों का रह चुका राज
रणथंभौर टाइगर रिजर्व की पारिस्थितिक क्षमता अधिकतम 55 बाघों की है, लेकिन यहां 80 से ज्यादा बाघ, बाघिन और उनके शावक मौजूद हैं। इनमें 50 से अधिक युवा बाघ हैं, जो टेरेटरी बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। खासकर जोन 1 से 5 के बीच 16 से अधिक बार बाघों की घुसपैठ दर्ज हो चुकी है। रणथंभौर किले के आसपास 8-9 शावक अभी भी घूम रहे हैं, जिससे संघर्ष बढ़ सकता है। वहीं रणथंभौर में बाघिन मछली का राज रह चुका है। ऐरोहेड, मछली, सुल्ताना, शक्ति बाघिन भी ताकत दिखा रही हैं।
बाघ ऐसे बनाता है टेरेटरी
विशेषज्ञों के अनुसार 2-3 साल की उम्र में बाघ युवावस्था में पहुंचते ही खुद की टेरेटरी तलाशता है। वह मल, मूत्र और ग्रंथि से निकली गंध से सीमा तय करता है, जो अन्य बाघों को चेतावनी होती है। टेरेटरी का आकार शिकार की उपलब्धता पर निर्भर करता है। कम शिकार वाले क्षेत्रों में यह 150 से 200 किलोमीटर, जबकि शिकार वाले क्षेत्रों में 30 से 60 किलोमीटर तक सीमित हो सकता है।
विशेषज्ञ बोले, रि-लोकेशन ही समाधान
रणथंभौर से बाघ टी-56 दतिया (एमपी), टी-91 भीलवाड़ा और टी-98 मुकुंदरा तक पहुंच चुके हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि अब रि-लोकेशन ही विकल्प है। वहीं कोर क्षेत्र के 23 गांवों में से सिर्फ 5 का ही विस्थापन हो सका है। कैलादेवी में 66 गांव स्थानांतरण की प्रतीक्षा में हैं।
एसओपी व गाइडलाइन बनाई: भूपेंद्र यादव
केंद्रीय वनमंत्री भूपेंद्र यादव ने बुधवार को अलवर में कहा कि देशभर में बाघों और मानव के बीच संघर्ष बढ़ रहा है। इन समस्याओं के समाधान के लिए जमीनी सतर पर काम कर रहे हैं। नई एसओपी व गाइडलाइन बनाई है। इसके तहत जहां बिग कैट शिकार करता है। वहां का मैनेजमेंट प्लान होना चाहिए, ताकि वे बाहर नहीं आ पाएं। श्रद्धालुओं को सतर्क रहने और मंदिर परिसर की मॉनिटरिंग के भी निर्देश दिए गए हैं।