क्या स्वतः ही रद्द हो जाएगी सदस्यता?
इस मुद्दे पर चर्चा तेज होने के पीछे है जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (3), जिसके मुताबिक, अगर किसी जनप्रतिनिधि को दो साल या उससे अधिक की सजा होती है, तो वह स्वतः ही अयोग्य हो जाता है और उसकी संसद या विधानसभा सदस्यता तत्काल प्रभाव से रद्द हो जाती है। हालांकि, यदि किसी जनप्रतिनिधि को उच्च न्यायालय से राहत या स्थगन आदेश (stay) मिलता है, तो उसकी सदस्यता पर तत्काल प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन कंवरलाल मीणा के मामले में हाईकोर्ट ने सजा को बरकरार रखा है, जिससे उनके अयोग्य घोषित होने का रास्ता साफ होता दिख रहा है।
सदस्यता स्वतः ही समाप्त हो- कांग्रेस
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने एक संयुक्त बयान में कहा कि जब हाईकोर्ट ने सजा को सही ठहराया है और विधायक को आत्मसमर्पण का आदेश दिया है, तो उनकी विधानसभा सदस्यता स्वतः ही समाप्त होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य विधानसभा अध्यक्ष को संविधान और नियमों के तहत विधायक की सदस्यता तत्काल प्रभाव से रद्द करनी चाहिए। लोकतंत्र की मर्यादा और नैतिकता के तहत यह जरूरी है।
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने आदेश में साफ शब्दों में कहा कि याचिकाकर्ता स्वयं को राजनीतिक व्यक्ति बताते हैं। ऐसे में उनसे कानून का पालन कराने की अपेक्षा थी, लेकिन उन्होंने एक प्रशासनिक अधिकारी पर पिस्तौल तान दी। यह गंभीर अपराध है। अदालत ने यह भी कहा कि मीणा के खिलाफ पहले से ही 15 आपराधिक मामले दर्ज हो चुके हैं, भले ही उनमें दोषमुक्त हुए हों, लेकिन उनकी आपराधिक प्रवृत्ति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
क्या बोले कंवरलाल मीणा?
फिलहाल कंवरलाल मीणा की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन भाजपा सूत्रों का कहना है कि विधायक सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की तैयारी कर रहे हैं। यदि सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत मिलती है, तभी उनकी सदस्यता बच सकती है, वरना विधानसभा में सीट खाली मानी जाएगी।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला साल 2005 का है, जब विधायक कंवरलाल मीणा की तत्कालीन SDM रामनिवास मेहता से तीखी बहस हो गई थी। आरोप है कि इस दौरान मीणा ने अपनी रिवॉल्वर निकालकर SDM की कनपटी पर तान दी और उन्हें जान से मारने की धमकी दी। इसके अलावा, घटना का वीडियो बना रहे वीडियोग्राफर की कैसेट निकालकर तोड़ दी गई थी। हालांकि, 2018 में एसीजेएम कोर्ट मनोहरथाना ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। लेकिन मामला एडीजे कोर्ट में पहुंचा, जहां साल 2023 में तीन साल की सजा सुनाई गई। इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी, लेकिन अब राजस्थान हाईकोर्ट ने भी सजा को बरकरार रखा है और विधायक को आत्मसमर्पण करने के आदेश दिए हैं।