हालांकि, कांग्रेस ने सख्त शर्तें रखी हैं कि वापसी के लिए नेताओं को पार्टी की विचारधारा के साथ बिना शर्त काम करना होगा। पार्टी हाईकमान के अंतिम फैसले का इंतजार है, लेकिन गुटबाजी और पुरानी अदावतें चुनौती बन रही हैं।
वापसी की राह पर कई बड़े नाम
सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस से निष्कासित या पार्टी से अलग हो चुके जिन नेताओं की वापसी को लेकर चर्चा हो रही है, उनमें पूर्व मंत्री अमीन खान, पूर्व विधायक मेवाराम जैन, गोपाल गुर्जर, रामचंद्र सराधना, बलराम यादव, कैलाश मीणा और खिलाड़ी लाल बैरवा जैसे नाम शामिल हैं। ये सभी नेता कभी अपने क्षेत्रों में कांग्रेस के प्रभावशाली चेहरे रहे हैं और पार्टी के भरोसेमंद सिपाही माने जाते थे। लेकिन पिछले कुछ चुनावों में इनमें से कई नेताओं ने पार्टी से अलग होकर या निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़कर कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया। अब ये नेता फिर से कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से संपर्क में हैं और वापसी की संभावनाएं तलाश रहे हैं। इनकी मंशा स्पष्ट है- आगामी स्थानीय चुनावों में खुद को स्थापित रखना और राजनीतिक प्रभाव बनाए रखना।
वापसी के लिए कांग्रेस की सख्त शर्तें
हालांकि कांग्रेस पार्टी ने इस बार वापसी को लेकर सख्त रुख अपनाया है। प्रदेश नेतृत्व ने साफ कर दिया है कि उन्हीं नेताओं की वापसी संभव होगी जो बिना किसी शर्त के पार्टी की विचारधारा को स्वीकार करते हुए काम करने को तैयार हों। अंतिम निर्णय पार्टी हाईकमान, यानी दिल्ली से ही लिया जाएगा। प्रदेश कांग्रेस के एक वरिष्ठ महासचिव के अनुसार, संगठन स्तर पर केवल सिफारिश की जा सकती है, लेकिन मंजूरी केंद्रीय नेतृत्व देगा। गौरतलब है कि इससे पहले भी कुछ बागी नेताओं की कांग्रेस में वापसी हो चुकी है। हाल ही में पार्टी ने वीरेंद्र बेनीवाल, फतेह खान, ओम बिश्नोई, सुनील परिहार और कामां से निर्दलीय विधायक रहे मुख्तार को फिर से गले लगाया है। इनकी वापसी संगठन को मजबूत करने और क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए की गई थी।
इन नेताओं की चर्चा सबसे गर्म
इस पूरी कवायद में सबसे अधिक सुर्खियों में अमीन खान और मेवाराम जैन हैं। अमीन खान लंबे समय तक विधायक और मंत्री रहे हैं। उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में निष्कासित किया गया था। वहीं, मेवाराम जैन तीन बार विधायक रह चुके हैं, लेकिन एक आपत्तिजनक वीडियो वायरल होने के बाद उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया था। अब दोनों नेता सक्रिय रूप से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं से संपर्क में हैं। उनकी कोशिश है कि वे फिर से पार्टी की मुख्यधारा में लौटकर आगामी चुनावों में भूमिका निभा सकें।
गुटबाजी बन रही सबसे बड़ी चुनौती
हालांकि कुछ नेताओं की वापसी पार्टी के भीतर नई खींचतान की वजह बन रही है। विशेष रूप से बाड़मेर में अमीन खान की वापसी को लेकर विरोध शुरू हो गया है। अमीन खान और हरीश चौधरी के बीच पुरानी राजनीतिक अदावत रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में हरीश चौधरी के करीबी फतेह खान ने अमीन खान के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ा, जिससे अमीन खान की हार हुई थी। इसके बाद से दोनों गुटों के बीच तनाव और बढ़ गया। फिलहाल अमीन खान जयपुर में डेरा जमाए हुए हैं लेकिन मीडिया से दूरी बनाए हुए हैं। हालांकि, अनौपचारिक बातचीत में वे कांग्रेस से अपने 50 साल पुराने रिश्ते का हवाला देते हैं और वापसी को जायज ठहराते हैं। उनका यह भी आरोप है कि हरीश चौधरी और प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा उनकी वापसी में सबसे बड़ी रुकावट हैं।
चुनाव से पहले सियासी गोटियां
दरअसल, राजस्थान में निकाय और पंचायत चुनाव नजदीक हैं। ऐसे में नेताओं का ‘आयाराम-गयाराम’ अब आम हो गया है। जिन नेताओं ने निर्दलीय या अन्य दलों के बैनर तले चुनाव लड़कर कांग्रेस का गणित बिगाड़ा था, उनका जनाधार अब पार्टी को लुभा रहा है। पार्टी इन नेताओं को वापस लाकर अपने जनाधार को मजबूत करने की रणनीति पर विचार कर रही है।