रजामंद न होने पर भी बच्चों के खतने का दबाव डाला जा रहा है। पत्रिका ने ब्यावर और अजमेर के आसपास के गांवों में मौजूद इन समुदायों के लोगों के बीच जाकर जमीनी हालात जाने तो उनकी पीड़ा सामने आई। इनका एक ही सवाल है, हमारे ही देश में यह कैसी धार्मिक स्वतंत्रता है?
गांव में पुलिस नहीं आती तो दाह संस्कार भी नहीं हो पाता
गांव चीतों का बाडिया में 29 मई को रोशन के पिता साजन की मौत हुई, तो गांव के ही लोग, रिश्तेदारों ने उनके दाह संस्कार का विरोध किया। ब्यावर सदर और सिटी थाना पुलिस को सूचना देने के बाद पुलिस पहुंची और दाह संस्कार करवाया। बाद में कई रिश्तेदारों और गांव के लोगों ने बात करना बंद कर दिया। प्रेम चीता ने बताया कि गांव में शवदाह स्थल नहीं था, जिसे हमने आवंटित करवाया। इस बात पर हम पर हमला किया गया। गांव में मस्जिद नहीं है, फिर भी अलवर से एक मौलवी आता है। मस्जिद बनाने और इस्लामी ढंग से रहने के लिए लोगों पर दबाव डालता है।
आर्थिक बहिष्कार… दुकान पांच हजार के किराए पर दी
गांव में ही मेरा सरस डेयरी बूथ था। इसमें कुछ सामान बेचकर महीने के 25-३5 हजार रुपए कमा रहा था। पिछले वर्ष 2३ दिसंबर को पिता महावीर सिंह का निधन होने पर हमने हिंदू रीति-रिवाजों से उनका दाह-संस्कार करना चाहा, लेकिन गांव के कुछ लोगों ने विरोध किया। वे चाहते थे कि हम पिता की देह को दफनाएं, लेकिन वो हमारा धर्म नहीं है। वे भीड़ बनकर आए और पथराव करना चाहते थे। हमने इस बारे में पुलिस को सूचना दी, तब दाह संस्कार कर पाए। इसके बाद लोगों ने हमारे बूथ से दूध खरीदना बंद कर दिया। जो खरीदने आते, उन्हें भी रोका। हमने इस आर्थिक बहिष्कार से हार कर अपना बूथ 5 हजार रुपए किराए पर दे दिया है और अब मैं टैंकर चलाता हूं।
–कालू सिंह, सराधना, ब्यावर
मैं हिंदू हूं तो सरकार क्यों मान रही है मुसलमान?
मैं यूपीएससी की तैयारी करते समय जब फॉर्म भरा तो जाति पूछी गई। मैंने मेहरात भरी। इसके बाद धर्म के कॉलम में हिंदू धर्म दिया ही नहीं गया, सिर्फ मुसलमान था। मैंने पाया कि ऐसा केंद्र की लगभग सभी सेवाओं में हो रहा है। मैं सरकार से पूछना चाहता हूं वह मुझे मुसलमान क्यों बनाना चाहती है? मेरी मर्जी के बिना धर्म परिवर्तन कैसे कर सकती है? –राजियावास, ब्यावर
बच्चों का खतना नहीं करने दिया तो गांव दुश्मन बना
ह मारे गांव में 90 दशक में बाहर से मौलवी आने लगे। गांव में मस्जिद बनवाई। बाहरी मौलवियों पर प्रतिबंध लगा तो गांव के एक आदमी को मोहन से शम्सुद्दीन बनाकर मस्जिद में मौलवी लगा दिया। गांव के कुछ लोग मेरे दो बेटों का खतना करवाना चाहते थे। मैंने उन्हें बाहर भेज दिया। अब मुझे अपने खेतों पर काम तक नहीं करने देते। –सुहावा, ब्यावर
होलिका दहन की परंपरा निभाना भी मुश्किल
हमारा गांव 1612 में बसा था, तभी से होलिका दहन की परंपरा रही है। गांव का मेहरात समुदाय उल्लास से होली मनाता था। लेकिन पिछले 15 साल से बाहर से कुछ मौलवी आने लगे और गांव के कुछ लोगों के साथ मिलकर 2022 में होलिका दहन रुकवाने का प्रयास किया। –सुरेश सिंह फौजी मैंने पुलिस और अजमेर कलक्टर को सूचित किया। उसके बाद प्रशासन की मौजूदगी में होलिका दहन तो हुआ, लेकिन गांव से दुश्मनी हो गई। मुझ पर कई बार हमले हुए। जून 2024 को हुए हमले के बाद मैं अस्पताल में भर्ती रहा। क्षेत्र में करीब 20 प्रतिशत लोग इस्लामी ढंग से रहने लगे हैं। ग्राम पंचायत में उनकी चलती है। पहले अड़त-पड़त की जमीन पर पास के खेत वाला खेती कर सकता था, अब हमें रोका जा रहा है क्योंकि हम हिंदू परंपराओं का पालन करते हैं।
–श्यामगढ़, ब्यावर
धर्मांतरण के प्रयास में जुटी संस्थाएं
अजमेर, ब्यावर, पाली, राजसमंद और भीलवाड़ा में चीता, मेहरात और काठात समुदाय के धर्मांतरण का प्रयास इस्लामी संस्थाएं कर रही हैं। गांवों में मस्जिदें व मदरसे बनवा कर मौलवी ओबीसी में आने वाली जातियों के लोगों को मुसलमान बनाने के प्रयास कर रहे हैं। –छोटू सिंह चौहान, संरक्षक, राजस्थान चीता मेहरात हिंदू मगरा-मेरवाड़ा महासभा
संघर्ष के हालत से बचना चाहिए
मेहरात जाति में हिंदू और मुसलमान दोनों धर्मों को मानने की परंपरा रही है। काठात उपजाति पूरी तरह से मुसलमान है। किसी वजह से संघर्ष के हालात बन रहे हैं, तो उससे बचना चाहिए। –जलालुद्दीन काठात, संरक्षक, राजस्थान चीता मेहरात काठात महासभा
यह होता है दबाव
गांव में मस्जिद निर्माण : गांव में मस्जिद निर्माण का विरोध करने पर हिंसा की गई। इन गांवों में पहले कभी मस्जिद नहीं थी। अंतिम संस्कार में दबाव : सबसे ’यादा दबाव अंतिम संस्कार के वक्त होता है। हिंदू रीति से दाह करना चाह रहे परिवारों को दफनाने या सामाजिक बहिष्कार झेलने की धमकी दी जाती है। रिश्ता जोड़ने में बाधा : हिंदू जीवन शैली से जी रहे परिवार पर दबाव डाला जाता है कि ब’चे का निकाह करवाएं। परिवार फेरे के लिए जोर दे तो रिश्ता नहीं जुड़ता।
मायरा भी नहीं: परिवार निकाह के बजाय फेरे करवाना चाहे तो आशंका रहती है कि कुछ रिश्तेदार मायरे से इनकार करेंगे। वे अकसर समारोह में शामिल भी नहीं होते। बाहरी मौलवियों का दबाव : ग्रामीणों ने बताया कि गांव में अलवर, मेवात, यूपी व बिहार से मौलवी आकर धार्मिक आयोजन करते हैं। इसमें शामिल नहीं होने पर समुदाय से अलग-थलग पड़ने की आशंका रहती है।
800 साल पहले शुरू हुई कहानी… बाहर से आए मौलवी
समुदाय की मौजूदगी: राजस्थान में ब्यावर, अजमेर, पाली, भीलवाड़ा और राजसमंद जिलों में मेहरात समुदाय की संख्या अधिक है। राजस्थान चीता मेहरात हिंदू मगरा-मेरवाड़ा महासभा के संरक्षक छोटू सिंह बताते हैं मेहरात समाज से कुछ वर्गों ने करीब 800 साल पहले कुछ इस्लामी रीतियों को अपनाया, लेकिन अधिकतर रीति-रिवाज हिंदू धर्म के ही मानते रहे। हिंदू धर्म के तहत ग्रामीण देवताओं की मूर्तियों की पूजा से लेकर वैवाहिक परंपराएं कायम रहीं। पिछले दो दशकों से अचानक बाहर से मौलवियों की गतिविधियां क्षेत्र में बढ़ीं और दाढ़ी-टोपी रखने से लेकर मुस्लिम नाम रखने और मस्जिदों में जाने का चलन बढ़ा।