तिलक नगर निवासी डॉक्टर सविता कमल। झोटवाड़ा के प्रेम नगर निवासी विक्रम सिंह राठौड़। पत्रिका फोटो
Father’s Day Today : जयपुर सहित पूरे राजस्थान में Fathers Day मनाया जा रहा है। बच्चे अपने पिता को विश कर रहे हैं। जिनके पिता नहीं है उन्हें लोग याद कर रहे हैं। एक नन्हे बच्चे के लिए मां ही उसकी दुनिया होती है। परंतु कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं, जिनके मां और पिता दोनों की भूमिका पिता ही निभा रहे हैं। ये पिता एकल होकर बच्चों की हर जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। मां की भूमिका निभाकर उनको दुलारते भी हैं। पिता के तौर पर बच्चों को जिम्मेदारियों का एहसास भी करवाते हैं। वे पिता के साथ एक मां की भी भूमिका अदा कर रहे हैं। पत्रिका प्लस टीम ने ऐसे पिताओं से बातचीत की, जो अपने बच्चों के लिए मां और पिता दोनों की जिम्मेदारी बखूबी तरीके से निभा रहे हैं।
तिलक नगर निवासी डॉक्टर सविता कमल ने कहा कि मेरे जीवन में शुरू से ही पिता मेरे आदर्श रहे हैं। हम तीन बहनें और दो भाई हैं। मेरे पिता प्रोफेसर के. एल. कमल ने हमेशा हम बहनों की लड़कों जैसी परवरिश की है। उन्होंने कहा कोई भी बच्चा अपने पिता को देखकर प्रेरित होता है। उनके जैसे बनने की कोशिश करता है। मैं भी उनमें से एक थी। मेरे जीवन में पिता का बहुत सपोर्ट रहा है। पिता राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर थे। उनसे प्रेरित होकर मैंने राजनीतिक विज्ञान चुना। पिता ने हमेशा मुझे साहस और धैर्य रहना और मंच पर निडर रहकर अपनी बात रखने का हौसला सिखाया है। मेरे दो लड़के हैं, मैंने उन्हें भी अपने पिता के मार्गदर्शन पर चलना सिखाया है। उन्होंने कहा कि माता-पिता आपके जीवन की वो कड़ी होते हैं। जो आपकी सफलताओं के साथ-साथ असफलताओं को भी करीब से देखते हैं। पिता ने हमेशा मेरा सपोर्ट किया।
बच्चों के साथ दोस्त बनकर रहता हूं
झोटवाड़ा के प्रेम नगर निवासी विक्रम सिंह राठौड़ कहते हैं कि बच्चों के साथ पिता नहीं दोस्त बनकर रहता हूं। करीब पांच साल पहले कैंसर से पत्नी का देहांत हो जाने पर बेटी विधि राठौड़ और बेटा विधान सिंह राठौड़ का जिम्मा आ गया। वह कहते हैं कि नौ साल पत्नी ने कैंसर से जंग लड़ी, लेकिन जीत नहीं पाई। तब ही समझ लिया था कि खुद ही हिम्मत से काम लेकर बच्चों की परवरिश करनी है। बेटी विधि आरएएस की तैयारी कर रही है। वहीं बेटा बीकानेर में मेरे छोटे भाई के पास में रहकर बोर्ड एग्जाम की तैयारी कर रहा है। उन्होंने कहा कि बेटा विधान जब एक साल का था, तब पत्नी को कैंसर हुआ था। उसकी जिम्मेदारी मेरा छोटे भाई और उसकी पत्नी बखूबी निभा रहे हैं। बच्चों को अकेले संभालना बहुत बड़ी जिम्मेदारी का काम है। ऐसे में काफी संघर्ष करना पड़ा, लेकिन दोनों बच्चों ने भी पूरा सहयोग दिया।
एक ही बेटा, फिर भी बुजुर्ग होते ही भेजा वृद्धाश्रम
शहर के ’अपना घर’ आश्रम में रह रहे लाला राम कहते हैं कि मेरा एक ही लड़का है। उसी ने ही मुझे यहां आश्रम में भेजा है। उन्होंने कहा कि मैं भले ही वृद्धाश्रम में हूं, लेकिन यहां से भी अपने बेटे के लिए उन्नति और विकास की दुआएं ही करता हूं। भले ही उनके बेटे ने उनको वृद्धाश्रम में भेज दिया है। उन्होंने बताया कि बेटा अब बात भी नहीं करता है। अब यहीं आश्रम में रहकर समय व्यतीत कर रहा हूं।