दरअसल, पिछले सत्र में भाजपा विधायक दल ने गर्ग पर आरोप लगाया था कि उन्होंने सदन में भरतपुर के लोहागढ़ किले से जुड़े मामले में गलत तथ्य रखे, जिससे सरकार की छवि धूमिल हुई। सरकार की ओर से मुख्य सचेतक जोगेश्वर गर्ग ने कहा था कि विधायक ने किले के अंदर रहने वालों को नोटिस जारी होने की बात कही, जबकि नोटिस किले के बाहर रहने को ही दिए गए थे।
इस सत्र में रिपोर्ट पेश होने की संभावना नहीं
मामला तीन मार्च को विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी तक पहुंचा और तुरंत विशेषाधिकार समिति को सौंप दिया गया। कई महीनों तक जवाब नहीं मांगा गया। समिति अध्यक्ष केसाराम चौधरी का कहना है कि ‘जवाब मिला है, उसका अध्ययन करने के बाद ही कोई रिपोर्ट रखी जाएगी।’ अब एक सितंबर से शुरू हो रहे सत्र में इस मामले पर रिपोर्ट पेश हो, इसकी संभावना बेहद कम है। दिलचस्प बात यह भी रही कि गर्ग जिस राष्ट्रीय लोक दल से आते हैं, वही दल दिल्ली में एनडीए सरकार का सहयोगी है। ऐसे में भरतपुर के मुद्दे पर गर्ग के खिलाफ सत्ता पक्ष का प्रस्ताव लाना उस समय खासा चर्चा का विषय बन गया था।
विशेषाधिकार हनन क्या है?
कोई सदस्य सदन की गरिमा के खिलाफ तथ्य रखता है या सदन के विशेषाधिकार का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव लाया जाता है। समिति जांच कर रिपोर्ट देती है। गर्ग विवाद की टाइमलाइन
- 24 फरवरीः भरतपुर मुद्दे पर सुभाष गर्ग ने स्थगन प्रस्ताव रखा।
- 3 मार्चः सत्ता पक्ष ने विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पेश किया।
- मार्चः प्रस्ताव को विधानसभा अध्यक्ष ने समिति को भेजा।
- अगस्तः समिति ने जवाब मांगा।
- मौजूदा स्थितिः गर्ग ने 250 पेज का जवाब भेजा।
- 1 सितम्बरः विधानसभा सत्र की शुरुआत, रिपोर्ट आना मुश्किल ।