इस अनुष्ठान में 360 घर आरण्यक
ब्राह्मण समाज की बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हुईं। गर्भगृह के बाहर विशेष आसन पर विराजमान भगवान को नए वस्त्र और विशेष भोग अर्पित किया गया। सभी 22 विग्रहों का भव्य श्रृंगार हुआ। श्रद्धालुओं के लिए विशेष प्रसाद तैयार किया गया, जिसे प्राप्त करने मंदिर में भारी भीड़ उमड़ी।
Jagannath Rath Yatra: राजशाही के दौर से जारी है यह परंपरा
बस्तर में गोंचा पर्व पर रथ यात्रा की परंपरा राजशाही के दौर से जारी है। कि वदंती है कि बस्तर राजपरिवार के सदस्य को १६ चक्कों के रथ संचालन की अनुमति मिली थी। इसमें गाेंचाव दशहरा पर्व पर रथ चलता है। श्रीगोंचा रथयात्रा आज
आज महाप्रभु भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा नगर भ्रमण पर निकलेंगे। दोपहर बाद पारंपरिक तुपकी (तोप) की गूंज के बीच रथयात्रा आरंभ होगी। रथ यात्रा से पहले बस्तर महाराजा द्वारा रथ के सामने झाड़ू लगाने की परंपरा का निर्वहन किया जाएगा। तीन अलग-अलग रथों में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की कुल 22 मूर्तियों को रथारूढ़ किया जाएगा।
रथों के संचालन में सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए हैं। रथ में केवल पुजारियों और नियत सेवा में लगे सेवकों को ही चढ़ने की अनुमति होगी। गोंचा समिति ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि भेंट-प्रसाद रथ पर फेंकने के बजाय, रथ के विश्राम स्थलों पर पुजारियों को सौंपें, जिससे भीड़ नियंत्रित रहे और भगदड़ से बचा जा सके।
बस्तर की आस्था और परंपरा का अनुपम संगम
Jagannath Rath Yatra: पुरी के बाद
बस्तर ही एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां तीन रथों में रथयात्रा निकाली जाती है। श्रीगोंचा पर्व न केवल बस्तर की धार्मिक विरासत का प्रतीक है, बल्कि यह सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक विविधता और आस्था की गहराई को भी दर्शाता है। श्रद्धालु आज जनकपुरी (गुंडिचा मंडप) में भगवान के नौ दिवसीय प्रवास के प्रथम दिन का पुण्य लाभ ले सकेंगे। बस्तर के जन-जन में गोंचा पर्व के प्रति विशेष श्रद्धा है, जो हर वर्ष इसकी भव्यता और जन सहभागिता को और व्यापक बनाता जा रहा है।