अपने मृत कर्मचारियों के परिजन की दुर्दशा पर विचार करें, जिन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान कर्त्तव्य निभाते हुए जान गंवा दी। यह सुनिश्चित करें कि जिन लाभों के वे हकदार घोषित किए गए हैं, उन्हें उन तक पहुंचाया जाए।
योजना के तहत नहीं दिया लाभ
कोरोना काल के दौरान राज्य सरकार ने संक्रमित मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टर्स, नर्सिंग स्टाफ सहित गृह विभाग, नगरीय प्रशासन विभाग आदि विभागों के कर्मचारियों के लिए मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना शुरू की थी। इसके तहत कर्मचारी की कोरोना ड्यूटी के दौरान संक्रमित होने से मृत्यु होने पर परिजन को 50 लाख की मदद दी जानी थी। भाभर की 1 मई 2021 को संक्रमण से मौत हुई थी। उनकी पत्नी मीना ने योजना के तहत राशि देने को आवेदन दिया, देवास कलेक्टर ने वर्ष 2023 में ये कहते हुए उनका आवेदन खारिज कर दिया कि उन्हें सक्षम अधिकारी ने कोरोना ड्यूटी पर नहीं लगाया था। वे इस योजना के हकदार नहीं हैं। इस पर मीना ने हाईकोर्ट की शरण ली, जहां 2 साल बाद फैसला आया। कोर्ट ने कलेक्टर के आदेश को न सिर्फ खारिज कर दिया, बल्कि 45 दिन में पूरी राशि देने के आदेश दिए।
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हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि, कोविड के दौरान जब पूरा देश बंद था और लोग घरों से निकलने में भी डर रहे थे तब याचिकाकर्ता के पति जैसे सरकारी कर्मचारियों ने अपने कर्त्तव्य व अधिकारियों के आदेशों का पालन किया। नागरिकों को बचाने में जान जोखिम में डाल दी।
राज्य सरकार द्वारा उन कर्मचारियों के परिवारों को मुआवजा देने के लिए एक बड़ी योजना शुरू की गई लेकिन इस योजना को लागू करते समय और मृतक कर्मचारी के परिवार के सदस्यों को आर्थिक रूप में वास्तविक लाभ प्रदान करते समय प्रतिवादी भुगतान करने से बचने के लिए तुच्छ आधारों का सहारा ले रहे हैं।