डॉ. ग्रैडलिन रॉय कौन थे?
डॉ. ग्रैडलिन रॉय चेन्नई स्थित सेवाथा मेडिकल कॉलेज में कंसल्टेंट कार्डियक सर्जन के पद पर कार्यरत थे। बुधवार को अस्पताल में राउंड लेने के समय अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी और वह फर्श पर ही गिर पड़े। मौजूद सहकर्मी डॉक्टरों ने उन्हें बचाने के लिए CPR से लेकर आपातकालीन एंजियोप्लास्टी, स्टेंटिंग, यहां तक कि ECMO जैसी एडवांस्ड तकनीकों का भी सहारा लिया, लेकिन जीवन वापस नहीं आ सका।
क्यों चिंताजनक है यह ट्रेंड
हैदराबाद के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर कुमार ने सोशल मीडिया पर यह खबर साझा करते हुए लिखा कि डॉ. रॉय की मौत कोई अलग-थलग घटना नहीं है। दरअसल, पिछले कुछ सालों से लगातार युवा डॉक्टरों और हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स में अचानक कार्डियक अरेस्ट के मामले सामने आ रहे हैं।
केस – (डॉ. गौरव गांधी की मृत्यु)
जामनगर के 41 वर्षीय प्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. गौरव गांधी का 6 जून की सुबह अचानक निधन हो गया। रिपोर्ट्स के अनुसार, उनकी मृत्यु कार्डियक अरेस्ट (हृदय गति रुकने) के कारण हुई मानी जा रही है। विशेषज्ञ का मानना है-
- डॉक्टरों को अक्सर 12 से 18 घंटे लगातार काम करना पड़ता है, और कुछ समय तो शिफ्ट 24 घंटे से भी अधिक हो जाती है।
- रोजमर्रा की जिंदगी में जीवन और मृत्यु से जुड़े फैसले, मरीजों की उम्मीदों पर खरा उतरने का दबाव और कानूनी बाध्यताएं मानसिक भार को और गहरा कर देती हैं।
- व्यस्त दिनचर्या के कारण डॉक्टर अक्सर पौष्टिक भोजन, आरामदायक नींद और व्यक्तिगत देखभाल पर ध्यान नहीं दे पाते।
- दूसरों की देखभाल में व्यस्त रहने के चलते डॉक्टर खुद के व्यायाम, नियमित स्वास्थ्य जांच और अपनी तंदुरुस्ती को प्राथमिकता देना भूल जाते हैं।
- मेडिकल पेशे में मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर चर्चा नहीं होती, जिससे बर्नआउट और अवसाद जैसी दुर्लभ लेकिन गंभीर समस्याएं गुमनामी में रह जाती हैं।