पिछले 22 सालों में हुए पांच विधानसभा चुनावों में से 3 बार इस क्षेत्र ने सत्ता पक्ष को ही विधायक चुना। बावजूद इसके मंत्री पद की उम्मीद हर बार अधूरी रह गई। 2003 में भाजपा के चंदूलाल साहू ने कांग्रेस के दिग्गज नेता और प्रदेश के पहले पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री अमितेश शुक्ला को हराया था। इस जीत को बड़ी राजनीतिक उलटफेर माना गया। जनता को उम्मीद थी कि साहू को मंत्री पद मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 2008 में नाराजगी के चलते जनता ने फिर से कांग्रेस के अमितेश शुक्ला को विधायक बना दिया। उस वक्त भाजपा की सरकार थी, लेकिन विधायक विपक्ष में बैठे।
2013 में भाजपा के संतोष उपाध्याय को विधायक चुना गया। सरकार फिर भाजपा की थी, लेकिन उपाध्याय को भी मंत्री पद नहीं मिला। 2018 में जनता ने दोबारा अमितेश शुक्ला को मौका दिया। इस बार कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन शुक्ला भी मंत्री नहीं बनाए गए। 2023 में भाजपा के रोहित साहू को विधायक चुना गया। साहू समाज का गढ़ माने जाने वाले इस इलाके सें साहू समाज का ही विधायक चुने जाने से जनता को उम्मीद थी कि उन्हें मंत्री पद मिलेगा। हाल ही में हुए मंत्रिमंडल विस्तार में तीन नए मंत्रियों की शपथ हुई, लेकिन राजिम एक बार फिर खाली हाथ रह गया। इस उपेक्षा से जनता में निराशा और गुस्सा दोनों बढ़ते जा रहे हैं। मंत्री पद की उपेक्षा के साथ-साथ राजिम को अब तक जिला न बनाए जाने की नाराजगी भी क्षेत्र में गहराती जा रही है।
16 से 33 जिले बन गए, बस राजिम ही रहा उपेक्षित
छत्तीसगढ़ गठन के समय राज्य में केवल 16 जिले थे। अब यह संख्या 33 जिलों तक पहुंच चुकी है। लेकिन लंबे समय से जिले बनाने की मांग कर रहा राजिम आज भी उपेक्षित है। यह मांग अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से उठती रही है। संत कवि पवन दीवान, जो छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के प्रमुख चेहरों में रहे, उनका सपना था कि राजिम को जिला बनाया जाए। लेकिन यह सपना आज भी अधूरा है। जनता का कहना है कि राज्य गठन को 25 साल हो चुके हैं, लेकिन राजिम को वह मान्यता नहीं मिली जिसकी वह हकदार है। साय सरकार को बने करीब डेढ़ साल हो चुके हैं, लेकिन न तो कोई घोषणा हुई है और न ही कोई औपचारिकता पूरी की गई है। य ह बात बहुत कम लोगों को पता होगी कि राजिम विधानसभा क्षेत्र ने अविभाजित मध्यप्रदेश को तीन बार मुख्यमंत्री दिए हैं। पं. श्यामाचरण शुक्ल ने यहां से जीतकर तीन बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला। पहली बार 1969 से 1972, दूसरी बार 1975 से 1977 और तीसरी बार 1989 से 1990 में वे मुख्यमंत्री चुनकर सत्ता में आए। वहीं, संत कवि पवन दीवान इस क्षेत्र से जीतकर जेल मंत्री बने थे। यह साफ है कि राजिम कभी राजनीति का मजबूत केंद्र हुआ करता था, लेकिन छत्तीसगढ़ बनने के बाद लगातार उपेक्षा का शिकार हो रहा है।
क्षे त्र की जनता अब अपने जनप्रतिनिधियों की चुप्पी पर भी सवाल उठा रही है। लोगों का कहना है कि जिन नेताओं को चुनकर भेजा गया, वे ही क्षेत्र की समस्याओं और अपेक्षाओं पर चुप्पी साधे हुए हैं। इससे यह संदेश जा रहा है कि जनप्रतिनिधि जनता की भावनाओं से जुड़ने में विफल हैं। अब यहां की जनता कह रही है कि यदि यह स्थिति बनी रही, तो वे भविष्य में कोई बड़ा राजनीतिक निर्णय लेने को मजबूर हो सकते हैं। नाराजगी के बीच संभव है कि थर्ड फ्रंट या दोनों प्रमुख दलों के अलावा किसी दीगर राजनीतिक पार्टी के चेहिरे को मौका दिया जाए।