Golden Anniversary: शोले और दीवार को टक्कर देने वाली इस फिल्म ने मचाई थी धूम,जोधपुर के महीपाल ने रचा था इतिहास
Jai Santoshi Maa movie and Mahipal: भारतीय सिनेमा के इतिहास में कुछ फिल्मों ने इतिहास रचा है, इनमें शानदार फिल्म जय संतोषी मां को रिलीज हुए 50 बरस हो गए। इस खास मौके पर पेश है एम आई जाहिर की स्पेशल रिपोर्ट:
हिन्दी सिनेमा के इतिहास की शानदार फिल्म जय संतोषी मां ने इतिहास रचा था। (फोटो: पत्रिका)
Jai Santoshi Maa movie and Mahipal: हिन्दी सिनेमा के इतिहास में पचास साल पहले रिलीज हुई बिना सुपरस्टार वाली एक फिल्म ब्लॉक बस्टर बन गई थी। सारी दुनिया शोले को सर्वोत्तम मूवी बताती है और दीवार को फ़िल्मों का ट्रेंड बदलने वाली फ़िल्म माना जाता है, मगर फ़िल्मों के इतिहास का एक पहलू यह भी है कि सन 30 मई 1975 को रिलीज़ हुई भारतीय सिनेमा इतिहास की कालजयी “जय संतोषी माँ” (Jai Santoshi Maa)फ़िल्म ने इन दोनों फ़िल्मों को जबरदस्त टक्कर दी थी। अतीत के झरोखे से देखें तो विजय शर्मा निर्देशित और रतनलाल भालवाडकर निर्मित इस ऐतिहासिक और शानदार फिल्म (Bollywood classics) का इतना अधिक प्रभाव था कि इसने बॉक्स ऑफिस (Jai Santoshi Maa box office) पर सफलता के मामले में शोले ( Sholay) को टक्कर दी और अमिताभ-शशि कपूर की फिल्म दीवार ( Deewar) को भी बहुत पीछे छोड़ दिया था। इसके केंद्र में एक कम जानी-मानी देवी थी, जिसने सिनेमाघरों में भीड़ खींची। इसमें जोधपुर के महीपाल ( Mahipal) ने शानदार अदाकारी कर फिल्म में जान डाल दी थी।
मां की शक्ति थी जो कम बजट में बनी थी, लेकिन इसने एक स्थायी छाप छोड़ी
अहम बात यह थी कि शोले और दीवार फिल्म में सुपरस्टार धर्मेंद्र, शशिकपूर और अमिताभ बच्चन थे और जय संतोषी मां में धार्मिक और पौराणिक फिल्मों के हीरो महीपाल। तब थिएटर मंदिर की तरह लगते थे और दर्शक भक्त। यह जय संतोषी मां की शक्ति थी जो कम बजट में बनी थी, लेकिन इसने एक स्थायी छाप छोड़ी।
जोधपुर के महीपाल थे इस ऐतिहासिक सेल्युलाइड शाहकार के नायक
खास बात यह थी कि इस फिल्म के हीरो राजस्थान के जोधपुर के महीपाल भंडारी थे, जिन्हेंं दुनिया महीपाल के नाम से जानती है। महीपाल जोधपुर के सरदारपुरा इलाके में रहते थे और हिन्दी साहित्य की प्रथम पंक्ति के कवि भी थे। उन्होंने सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के साथ कवि सम्मेलनों में कविता पाठ किया था। जोधपुर में उनका कई बार इंटरव्यू लेने का अवसर मिला।
यह फिल्म रिलीज होने के बाद ही संतोषी माता की पूजा शुरू हुई
खुद महीपाल ने ही बताया था कि यह फिल्म रिलीज होने के बाद ही संतोषी माता की पूजा शुरू हुई और जगह-जगह उनके मंदिर नजर आने लगे। उनकी सादगी की एक बात याद आती है, जब वे बीमार हुए तो मुंबई के नानावटी या जसलोक अस्पताल के बजाय अपनी धरती अपनी मरुधरा राजस्थान के जोधपुर शहर के सरकारी महात्मा गांधी अस्पताल में इलाज करवाना पसंद किया।
सिनेमाघर में दर्शक चप्पल उतार कर जाते थे
उन्होंने खुद बताया था फिल्म की रिलीज़ के बाद, सिनेमाघरों में लोग चप्पल उतार कर जाते थे और फिल्म के दौरान फूलों और सिक्कों की बारिश करते थे। यह फिल्म दर्शकों के लिए एक धार्मिक अनुभव बन गई थी, जहां फिल्म खत्म होने पर प्रसाद भी बांटा जाता था।
जय संतोषी मां ने बॉक्स ऑफ़िस पर लगभग 5 करोड़ रुपए कमाए
आलम यह था कि बॉक्स ऑफ़िस पर जय संतोषी मातालगभग 5 करोड़ रुपए कमाए थे। इसे एक उल्लेखनीय उपलब्धि माना गया, खासकर यह देखते हुए कि इसे सिर्फ़ 2.5 लाख के बजट में बनाया गया था।
इसने कम बजट वाली भक्ति फ़िल्म की अपेक्षाओं को धता बता दिया था
फ़िल्म की सफलता विशेष रूप से उल्लेखनीय थी क्योंकि इस फ़िल्म ने कम बजट वाली, भक्ति फ़िल्म की अपेक्षाओं को धता बता दिया था। शोले ने 35 करोड़ रुपए कमाए थे, जबकि अमिताभ बच्चन और शशिकपूर अभिनीत फ़िल्म दीवार ने 7.5 करोड़ रुपए की कमाई की थी बड़े सितारे न होने के बाद भी बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी हासिल की।
महान फिल्म अभिनेता महीपाल के अंतिम दिनों की यादगार तस्वीर।
महीपाल की फिल्मों का प्रदर्शन कर परिजनों को सम्मानित किया गया था
मुझे याद है कि जोधपुर फिल्म सोसायटी के सचिव प्रो मोहनस्वरूप माहेश्वरी के प्रयासों और तत्कालीन जिला कलक्टर प्रीतम बी यशवंत के सहयोग से राजस्थान पत्रिका जोधपुर संस्करण और राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में टाउन हॉल में आयोजित कार्यक्रम में महीपाल की फिल्मों का प्रदर्शन कर उनके परिजनों को सम्मानित किया गया था।
महीपाल का जन्म, निधन और प्रमुख फिल्में
जन्म: 24 दिसंबर 1919, जोधपुर, राजस्थान निधन: 15 अगस्त 2005, मुंबई, महाराष्ट्र
महीपाल की प्रमुख फिल्में
जय संतोषी मां (1975) – सबसे चर्चित और सफल भक्ति फिल्म, जिसने उन्हें पौराणिक किरदारों में अमर कर दिया।
रामायण (1960) – राम के रोल में मशहूर, यह फिल्म धार्मिक फिल्मों में उनकी खास पहचान बनी। माता कौशी (1966),सत्यनारायण की कथा (1969), शिव पार्वती (1962)।
दर्शकों की भावनाएं और आस्था किसी भी बड़े सितारे से अधिक प्रभावी
बहरहाल ‘जय संतोषी मां’ ने बड़े सितारे न होने के बाद भी बॉक्स ऑफिस पर सफलता प्राप्त की, जो यह दर्शाता है कि दर्शकों की भावनाएं और आस्था किसी भी बड़े सितारे से अधिक प्रभावी हो सकती हैं। यह फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुई है। वहीं महीपाल ने हिंदी और राजस्थानी फिल्मों में धार्मिक और पौराणिक किरदार निभाकर भारतीय सिनेमा में अपनी अलग पहचान बनाई।