कम ऊंचाई पर फट रहे बादल
बीते कुछ सालों में उत्तराखंड से लेकर हिमाचल प्रदेश समेत पहाड़ी राज्यों में बादलों के फटने का ट्रेंड बेहद चौंकाने वाला है। उत्तर भारत के मौसम विभाग के वैज्ञानिकों की माने तो बादलों के फटने की घटना तकरीबन 5 से 6 हजार फीट की ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों में मानसून के समय होती थी। लेकिन बीते कुछ सालों में ये ऊंचाई सीमा बदलकर 3 से 4 हजार फीट तक पहुंच गई है, जो चिंता का कारण बनी हुई है। क्लाउडबर्स्ट की ऊंचाई घटकर कम होने का कारण नमी और हवाओं में दबाव की भिन्नता है।
मौसम और क्लाइमेट का चेंज होना पैटर्न बदलने की वजह
मौसम विभाग के उत्तरी जोन के वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक डॉक्टर पवन यादव का कहना है कि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में पिछले 2 सालों से 2 ऐसी तबाही मची। पुराने पैटर्न पर ही बादलों के फटने का सिलसिला एक बार फिर से शुरू हो गया है। उनके मुताबिक बादलों के बरसने की टाइमिंग भी बीते कुछ सालों में बदली है। साथ ही बादलों के फटने की ऊंचाई भी कम हो गई है। इसके पीछे की वजह उन्होंने मौसम और क्लाइमेट का चेंज होना बताया। डॉक्टर पवन यादव का कहना है कि जिस तरीके से बारिश ने बीते 2 सालों में पहाड़ी इलाकों में तबाही मचाई थी उसका बड़ा कारण बादलों का कम ऊंचाई पर फटना भी था। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ समय से इस बात को नोटिस किया जा रहा है जो अमूमन बादलों के फटने की प्रक्रिया 6 हजार फीट या उसके आस-पास की थी उसकी ऊंचाई घटी है।
4 हजार फीट पर फट रहे बादल
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश से लेकर उत्तराखंड और पूर्वोत्तर के पहाड़ी राज्यों में बादलों के फटने की ऊंचाई इस समय 4 हजार फीट तक पहुंच गई है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, जिस तरह से हिमाचल के कांगड़ा में 2023 में बादल फटा था, इतनी ऊंचाई वाले इलाकों में अमूमन बादल के फटने की घटनाएं नहीं होती थी। जिन इलाकों से इस बार भी बादल फटने की सूचनाएं आ रही है उनकी ऊंचाई कम है।
क्यों फटते हैं बादल
मौसम विभाग के वैज्ञानिकों की माने तो जब नमी से भरे बादल हवा के साथ आगे बढ़ते हैं और उनके रास्ते में ऊंचे पहाड़ या कोई और बड़ी प्राकृतिक बाधा आ जाती है, तो वे रुक जाते हैं। ये बादल पानी के भार के कारण आगे नहीं बढ़ पाते और एक ही जगह पर एकत्रित हो जाते हैं। ऐसे में बादलों को फटने का खतरा बढ़ जाता है। जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के पूर्व उपनिदेश (मौसम) डॉक्टर आरएन प्रजापती का कहना है कि कम ऊंचाई वाले इलाकों में बादलों के फटने का सिलसिला ज्यादा खतरनाक होता है। उन्होंने बताया कि अमूमन पहाड़ों पर हर हिस्से में आबादी होती ही है लेकिन पहाड़ के शुरुआती 4 हजार फीट की ऊंचाई वाले हिस्सों में भी सबसे ज्यादा आबादी होती है। इसी वजह से अगर कम ऊंचाई पर बादल फटता है तो ज्यादा आबादी प्रभावित होगी। साथ ही खतरा भी बढ़ेगा।
क्यों मुश्किल है बादल फटने की भविष्यवाणी?
मौसम विभाग के वैज्ञानिकों की माने क्लाउडबर्स्ट की भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल है, क्योंकि ये अचानक होने वाली घटना है। ये घटनाएं सामान्य बारिश की तरह बड़े इलाके में नहीं होतीं, बल्कि एक बहुत छोटे दायरे में और बेहद कम समय के लिए होती हैं। यही वजह है कि इसकी पहले से भविष्यवाणी कर पाना मौजूदा तकनीकों के लिए एक बड़ी चुनौती है।