Dausa News: 2 साल पहले पिता, फिर बीमार मां की चारपाई पर मौत, मासूम बच्चे अनाथ… सिस्टम पर उठते सवाल
सुमित्रा देवी की तबीयत बिगड़ गई। ग्रामीणों ने इलाज के लिए उन्हें ले जाने का प्रयास किया, लेकिन रास्ता न होने की वजह से वे उन्हें समय पर अस्पताल नहीं पहुंचा सके और चारपाई पर ही उनकी मौत हो गई।
देश को आजाद हुए 78 वर्ष से अधिक हो चुके हैं, लेकिन राजस्थान दौसा जिले के पापड़दा क्षेत्र का सर्र गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। यहां न सड़क है, न स्वास्थ्य सेवा, न संचार का कोई साधन। इसी अव्यवस्था की कीमत 35 वर्षीय सुमित्रा देवी को अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी।
सर्र गांव पहाड़ी क्षेत्र में बसा है। गांव तक पक्की सड़क नहीं होने से बीमारों को आज भी चारपाई पर उठाकर नीचे लाना पड़ता है। सुमित्रा देवी की तबीयत बिगड़ गई। ग्रामीणों ने इलाज के लिए उन्हें ले जाने का प्रयास किया, लेकिन रास्ता न होने की वजह से वे उन्हें समय पर अस्पताल नहीं पहुंचा सके और चारपाई पर ही उनकी मौत हो गई।
करीब दो वर्ष पूर्व सुमित्रा देवी के पति प्यार सिंह पोसवाल का निधन हो गया था। तब से वह मजदूरी कर अपने छोटे बच्चों का पालन-पोषण कर रही थी। अब उनके निधन के बाद बच्चे अनाथ हो गए हैं। गांव में मातम पसरा है और लोग यही पूछ रहे हैं कि अब इन मासूमों की जिम्मेदारी कौन उठाएगा?
राशन के लिए भी संघर्ष
गांव में राशन डीलर की मशीन काम नहीं करती। ग्रामीणों को राशन लेने के लिए दूर-दराज के गांव जाना पड़ता है और भारी-भरकम बोझ खुद ढोकर लाना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि वे कई बार जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों को समस्या से अवगत करा चुके हैं, लेकिन आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। सिर्फ आश्वासन मिले हैं, समाधान नहीं।
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एक ही तालाब से पीते हैं पानी
गांव में न पीने के पानी की व्यवस्था है, न बिजली और न मोबाइल नेटवर्क। ग्रामीणों को जानवरों के साथ एक ही तालाब से पानी पीना पड़ता है। मोबाइल नेटवर्क नहीं होने के कारण फोन करने के लिए पहाड़ी से नीचे उतरना पड़ता है। मोबाइल वहां सिर्फ एक ‘खिलौना’ बनकर रह गया है। गर्भवती महिलाओं को भी चारपाई पर उठाकर नीचे लाना पड़ता है। बरसात में हालात और भी खराब हो जाते हैं। कई बार रास्ते में ही प्रसव हो जाता है, जिससे मां-बच्चे दोनों की जान को खतरा बना रहता है।
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