वैज्ञानिकों ने सर्वे में पाया कि जिस स्थान पर बांध का निर्माण हुआ वहां पर बोल्टर अर्थात गोल पत्थर होने के कारण बांध का पानी नीचे चला जाता है। उनका मानना था कि एक दो वर्ष बाद शील्ट जमने के बाद पानी स्वत: रुक जाएगा, लेकिन आठ साल होने के बाद भी बांध लबालब भर कर जनवरी माह तक रीत जाता है।
जल संसाधन विभाग के आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि करीब 6 वर्ष पूर्व यहां पर भू वैज्ञानिकों का जयपुर व कोटा से टीम आई थी, जिन्होंने बांध में पानी गायब होने के मामले की जांच की। व पानी रोकने के उपाय बताए थे। इसके प्रस्ताव जल संसाधन विभाग बूंदी के अधिकारियों ने तैयार कर कोटा मुख्य अभियंता कार्यालय में भिजवाए थे, लेकिन कोटा में फाइल आगे नहीं बढ़ पाई, जिसका खामियाजा क्षेत्र के हजारों किसान भुगत रहे हैं।
सथूर ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच मनमोहन धाभाई मंगलवार को अजमेर में जल संसाधन मंत्री हरीश रावत से मिले एवं बांध का मामला उठाया। धाभाई ने बताया कि गुढ़ा बांध का निर्माण हुए 8 वर्ष होने के बाद भी क्षेत्र की एक बीघा भी जमीन सिंचित नहीं हो पाई है। धाभाई ने बताया कि बांध का निरीक्षण कर बांध का उपचार करवाने की मांग की है। ताकि बांध लबालब रहे तीन गांवों में सिंचाई सुविधा हो। इसके लिए उन्होंने अतिरिक्त बजट देने की भी मांग।
कुल कैचमेंट एरिया
9.06 स्क्वायर किमी,
कुल क्षमता 0.90 एमसीयुएम,
सिंचाई क्षेत्र 184 हैक्टेयर
बांध की लंबाई 760 मीटर,
गेज-13.45 फीट
सिंचित गांवों की भूमि लिफ्ट से-
सथूर, बड़ौदिया, बोरखंडी
कुल लागत करीब 10करोड चंद्रभागा लघु सिंचाई परियोजना 8 वर्ष पूर्व तैयार हो गई थी। बारिश में बांध हर वर्ष लबालब भर जाता है, लेकिन बांध में पानी नहीं ठहरता है। ऐसे में जल संसाधन विभाग के अधिकारियों द्वारा तकनीकी खामियां रह गई है। सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च किए, लेकिन उसका लाभ किसानों को नहीं मिला है। मामले की स्पेशल टीम से जांच करवाई जाए। एवं बाद में रही तकनीकी खामियों को दुरुस्त कर , बांध में पानी का भराव 12 महीने रहे। ऐसी व्यवस्था हो ।
मनमोहन धाभाई, पूर्व सरपंच ग्राम पंचायत सथूर।
रोहित बघेरा, अधिशासी अभियंता, जल संसाधन विभाग बूंदी