ममता कुलकर्णी की महामंडलेश्वर बनने के समय की एक तस्वीर
Mamta Kulkarni News: ममता कुलकर्णी एक बार फिर सुर्खियों में हैं। हाल ही में उन्होंने एक समाचार एजेंसी के साथ बातचीत के दौरान बताया कि उन्होंने एक-दो नहीं बल्कि 12 साल तक कठोर तपस्या की है। इसका फल उन्हें क्या मिला? आइए जानते हैं।
इसके अलावा अभिनेत्री ममता कुलकर्णी ने एक बातचीत में अपने बचपन से जुड़ा एक खास किस्सा साझा किया। उन्होंने बताया कि एक बार ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका देवी उनकी दादी के सपने में प्रकट हुई थीं और उनके बारे में कुछ विशेष संकेत दिए थे। ममता ने इसे अपने जीवन की आध्यात्मिक यात्रा का प्रारंभिक संकेत बताया।
ममता कुलकर्णी का ऐसे नाम पड़ा ‘यमाई’
ममता कुलकर्णी ने कहा, “मेरा जन्म जमदग्नि गोत्र में हुआ है। मेरी दादी को एक स्वप्न में ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका देवी ने दर्शन दिए और कहा कि मैं इस बच्ची के रूप में यमाई नाम से जन्म ले रही हूं, इसलिए इसका नाम यमाई रखना। तभी से मेरा नाम यमाई पड़ा।”
उन्होंने आगे कहा, “कल्कि अवतार के गुरु परशुराम हैं, जो रेणुका के पुत्र और कलयुग के गुरु माने जाते हैं। मैं जीवन में किसी और उद्देश्य से आई थी, लेकिन ईश्वर की इच्छा से मेरे जीवन में कई कार्य अपने आप ही होते चले गए। जो कुछ उन्होंने मुझसे कराना चाहा, वही मेरे जीवन में घटित होता गया।”
12 साल कठोर तपस्या की सच्चाई
ममता कुलकर्णी ने बताया कि उन्होंने 12 साल कठोर तपस्या की है। उन्होंने बताया, “मैंने 12 साल कठोर तप किया, मेरी 12 कुंडली जागृत हो गईं। प्रत्येक चक्र पर भगवान स्थापित होते हैं। अंतिम सूर्य चक्र होता है। जब भगवान परीक्षा लेते हैं, तब जाकर आप सूर्य चक्र तक पहुंच पाते हैं। आचार्य प्रमोद कृष्णम का मैं आभार जताती हूं कि उन्होंने मुझे कल्कि धाम के समारोह में निमंत्रण दिया। इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।”
इससे पहले ममता कुलकर्णी ने कहा था कि उनका मानना है, ईश्वर हर व्यक्ति को किसी न किसी विशेष उद्देश्य के साथ इस धरती पर भेजते हैं। जगत जननी ने उन्हें भी पुण्य कर्मों की पूर्ति के लिए चुना है और अब उन्होंने अपने जीवन का संपूर्ण नियंत्रण भगवान को सौंप दिया है।
ममता ने बताया कि वह पहले महाकुंभ में केवल स्नान के लिए गई थीं, लेकिन वहां से लौटते समय उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि प्राप्त हुई। उनके अनुसार, यह समझ पाना आसान नहीं है कि भगवान किसे किस उद्देश्य से और किस दिशा में भेजते हैं। ऐसे में उन्होंने खुद को पूरी तरह ईश्वर की इच्छा के हवाले कर दिया है।
वह मानती हैं कि श्री कल्कि धाम की यात्रा और शिला दान का कार्य भी महज संयोग नहीं, बल्कि भगवती की प्रेरणा और किसी गहरे आध्यात्मिक उद्देश्य का परिणाम है। यह उनके गहरे धार्मिक विश्वास और समर्पण को दर्शाता है।