रेयर अर्थ एलिमेंट्स को आधुनिक तकनीक का आधार कहा जाता है। देश अब तक इन खनिजों के लिए चीन जैसे देशों पर निर्भर रहा है। एमपी के सिंगरौली की इनकी उपलब्धता भारत को आयात-निर्भरता से मुक्त कर वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अग्रणी बनाएगी।
भविष्य का क्रिटिकल मिनरल हब सिंगरौली
कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा किए गए शोध में सिंगरौली की कोयला खदानों और चट्टानों में REEs (जैसे स्कैंडियम, यिट्रियम आदि) की आशाजनक सांद्रता पाई गई है। कोयले में इनकी औसत मात्रा 250 पीपीएम और गैर-कोयला स्तर पर लगभग 400 पीपीएम आंकी गई है। जुलाई 2025 में इस खोज की आधिकारिक घोषणा हुई। विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में कोयले की राख और ओवरबर्डन भी क्रिटिकल मिनरल्स का सैकण्डरी स्रोत बन सकते हैं। केन्द्रीय कोयला एवं खान मंत्री जी किशन रेड्डी ने संसद में यह जानकारी दी थी। उनका कहना है कि भारत में पहली बार इतनी विशाल मात्रा में इन दुर्लभ तत्वों का पता चला है। यह उपलब्धि भारत को ग्रीन एनर्जी, इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा तकनीक के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी।
सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करने की संभावनाएं
रेयर अर्थ एलिमेंट्स की खोज को देखते हुए राज्य सरकार अब इनके प्रसंस्करण और शोध-अन्वेषण के लिए बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर विकसित करने में जुट गई है। हाल ही में खनिज संसाधन विभाग के प्रतिनिधिमंडल ने इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (आईआरईएल) की भोपाल इकाई का दौरा किया और संभावित सहयोग पर चर्चा की। विभाग रेयर अर्थ एलिमेंट्स पर सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करने की संभावनाएं तलाश रहा है। एमपी के सिंगरौली जिले में मिले इस खजाने से भारत ग्रीन एनर्जी, इलेक्ट्रिक वाहनों और उच्च तकनीकी उद्योगों में आत्मनिर्भर बनेगा। चीन पर निर्भरता खत्म होगी और भारत वैश्विक मंच पर शक्तिशाली देश के रूप में स्थापित हो सकेगा।
बास्टनेसाइट, जेनोटाइम, लोपेराइट, मोनाजाइट
रेयर अर्थ एलिमेंट्स प्राकृतिक रूप से कई खनिज संरचनाओं में पाए जाते हैं। इनमें बास्टनेसाइट, जेनोटाइम, लोपेराइट और मोनाजाइट प्रमुख हैं। भारत के तटीय क्षेत्रों की रेत और अपक्षयित ग्रेनाइट मिट्टी भी इन तत्वों से समृद्ध मानी जाती है।
रेयर अर्थ एलिमेंट्स दुर्लभ मृदा तत्वों के प्रमुख उपयोग
रेयर अर्थ एलिमेंट्स यानि दुर्लभ मृदा तत्वों का उपयोग अनेक आधुनिक उद्योगों में किया जाता है- कैमरा स्मार्टफोन : डिस्प्ले और प्रकाश उपकरणों में खासा इस्तेमाल होता है। यूरोपियम, टर्बियम और यिट्रियम एलईडी, एलसीडी और फ्लैट पैनल डिस्प्ले में उपयोग में आते हैं। कैमरा और स्मार्टफोन लेंस 50% तक लैथेनम से निर्मित होता है। उच्च-प्रदर्शन के हथियारों और अंतरिक्ष तकनीक : सैमरियम-कोबाल्ट और नियोडिमियम चुम्बक उच्च-प्रदर्शन वाले हथियारों, उपग्रह संचार और रक्षा इलेक्ट्रॉनिक्स में अनिवार्य है। पेट्रोलियम उद्योग : लैंथेनम और सेरियम का उपयोग ऑटोमोटिव कैटेलिटिक कन्वर्टर्स और रिफाइनिंग में उत्सर्जन कम करने में होता है।
इलेक्ट्रिक वाहन : नियोडिमियम-आयरन-बोरॉन तथा सैमरियम-कोबाल्ट चुम्बक इलेक्ट्रिक वाहनों और पवन ऊर्जा संयंत्रों के लिए आवश्यक हैं। ऑटोमोबाइल सेक्टर : हाइब्रिड वाहनों की बैटरियों में लैथेनम आधारित मिश्र धातुओं का प्रयोग होता है।
इस्पात : मिशमेटल (सेरियम, लैथेनम, नियोडिमियम और प्रेजोडायमियम का मिश्रण) इस्पात की गुणवत्ता सुधारने में उपयोगी है। स्वास्थ्य : गैडोलीनियम MRI स्कैन में कंट्रास्ट एजेंट के रूप में प्रयोग होता है, जबकि ल्यूटेटियम और यिट्रियम समस्थानिक कैंसर उपचार और PET इमेजिंग में सहायक हैं।