राजा और सोनम की शादी से माता-पिता लें सबक, ना करें फोर्स
Meghalaya Murder Case: राजा-सोनम की शादी ने पूरे देश को किया स्तब्ध, भारतीय समाज और परम्पराओं की कड़वी सच्चाई उजागर करता ये मामला माता-पिता और समाज के लिए बड़ा सबक… जानें क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स…
Meghalaya Murder Case a lesson: (फोटो सोर्स: पत्रिका)
Meghalaya Murder Case: जबरन रिश्तों का बोझ कितना खौफनाक हो सकता है.. राजा और सोनम रघुवंशी के इस मामले ने भारतीय समाज और उसकी परम्पराओं की कड़वी सच्चाई को हर किसी के सामने ला खड़ा किया है। जहां शादी से पहले आज भी लड़कियों को अपनी मर्जी जाहिर करने का अधिकार तक नहीं दिया जाता। राजा और सोनम का मामला, जिसमें कथित तौर पर जबरन शादी के बाद सोनम ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति राजा की हत्या कर दी, ने पूरे भारतीय समाज को झकझोर कर रख दिया है। पूरा देश इस हत्याकांड से स्तब्ध रह गया। यह घटना न केवल एक त्रासदी बनकर हमारे सामने है, बल्कि सवाल भी उठाती है कि आखिर कब तक भारतीय समाज में लड़कियों को ‘ना’ कहने की आजादी से वंचित रखा जाएगा?
इंदौर के ट्रांसपोर्ट व्यापारी राजा रघुवंशी और सोनम रघुवंशी की शादी 11 मई को हुई और फिर प्रेमी के साथ मिलकर सोनम ने पति की निर्मम हत्या करवा दी। मामले में सामने आया है कि उसके परिवार ने उसकी मर्जी के खिलाफ जाकर राजा के साथ उसकी शादी की। जानकारी मिली है कि सोनम ने अपने परिवार को अपने प्रेमी के बारे में बताया था, लेकिन उसकी बातों को अनसुना कर दिया गया। नतीजा, सोनम ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर इतना खौफनाक कदम उठाया कि, जिसने एक जिंदगी छीन ली और कई परिवारों को सदमे में डाल दिया।
पुलिस ने इस मामले में सोनम और उसके प्रेमी के साथ ही अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। मामले में जांच जारी है। सोनम समेत सभी आरोपी मेघालय पुलिस की ट्रांजिट रिमांड पर हैं।
भारतीय समाज में जबरन शादी की हकीकत
भारत में आज भी कई परिवारों में शादी को लड़की की मर्जी से ज्यादा सामाजिक और पारिवारिक दबाव का मामला माना जाता है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के अनुसार, भारत में 23% महिलाओं की शादी 18 साल से कम उम्र में हो जाती है, और इनमें से कई शादियां उनकी सहमति के बिना होती हैं। जबकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि लड़कियों को अक्सर परिवार की इज्जत और सामाजिक परंपराओं के नाम पर अपनी आवाज दबानी पड़ती है। लड़कियों की आजादी छीनने से उनमें पैदा होने वाला दब्बूपन ही ऐसी भयानक वारदातों का कारण बन रहा है।
इस खौफनाक त्रासदी से सबक लेते हुए, माता-पिता को अपने बच्चों की भावनाओं और इच्छाओं को प्राथमिकता देनी चाहिए। सामाजिक जागरुकता, शिक्षा और खुले संवाद के जरिए ही भारतीय समाज की इस पुरानी परंपरा को बदला जा सकता है। वैसे तो सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों की ओर से ऐसी कई योजनाएं संचालित की जा रही हैं, जो लड़कियों को आत्मनिर्भर बना रही हैं और उन्हें अपनी आवाज उठाने का हौंसला दें। लेकिन सबसे बड़ा सवाल उसकी जिंदगी के अहम फैसले का है, जो केवल लड़के का हक नहीं।
राजा और सोनम की कहानी एक दुखद अंत के साथ खत्म हुई है, लेकिन यह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर कब तक हमारी बेटियां खामोश रहेंगी? कब तक ‘ना’ कहने की आजादी को परिवार की इज्जत से जोड़ा जाएगा? यह समय है कि भारतीय समाज अपनी परंपराओं पर पुनर्विचार करे और हर लड़की को अपनी जिंदगी की डोर अपने हाथों में थामने का अधिकार दे।