विधायक भंडाणा ने बताया कि मांडल तालाब का इतिहास मुगल बादशाह शाहजहां से जुड़ा है, जो 1614 में मेवाड़ के राजा अमरसिंह से संधि कर वापस दिल्ली लौटते समय यहां रुके थे। मांडल तालाब भीलवाड़ा जिले का एक महत्वपूर्ण जल स्रोत है, जिसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी है।
प्रदेश का सबसे बड़ा तालाब
14 वीं शताब्दी के बाद विक्रम सम्वत 1133 में अजयपाल के वंश में मांडोजी हुए थे। इन्होंने मेवाड़ भ्रमण के दौरान भगवान शंकर का स्थान देखा तथा पास में ही नाला बहता देख रात्री विश्राम किया। किंवदंति है कि भगवान शंकर ने स्वपन में मांडोजी को दर्शन देकर कहा जिस उदेश्य से तुम यहां आए हो वह स्थान यही है। यहां जलाशय का निर्माण करवाओ। भगवान के आशीर्वाद से यहां एक ही रात में भूत सेना ने इस जलाशय का निर्माण कर दिया। कहते हैं कि किसी महिला ने तड़के चक्की चला दी। इस कारण जलाशय का कुछ काम अधूरा रह गया।
55 साल में सिर्फ 2 बार छलका
14 फीट भराव क्षमता वाले इस तालाब पर डेढ़ किमी लंबी और 50 मीटर चौड़ी पाल है। पाल चौड़ी होने से यह सुरक्षित है। करीब 6 किमी क्षेत्र में फैले तालाब से हर साल पांच गांवों की 6 हजार बीघा जमीन में सिंचाई होती है। 55 साल में दो बार वर्ष 1973 व 2006 में ही छलका है।कुल भराव क्षमता 490 एमसीएफटी है।
तालाब की है तीन नहर
तालाब 4132 बीघा 6 बिस्वा में फैला है। तीन किलो मीटर परिधी में फैले तालाब का सिंचित क्षेत्र 1500 हैक्टेयर है। इसमें से 1300 हैक्टेयर कमांड क्षेत्र और 200 हैक्टेयर नॉन कमांड क्षेत्र है। 2700 बीघा डूब क्षेत्र वाले इस तालाब में 2155 बिधा बिलानाम व 545 बिधा वन विभाग की जमीन है। तालाब की तीन नहर है। इस तालाब से करीब 4500 बीघा जमीन सिचाई की जाती है।