मामले में हाईकोर्ट ने साल 2013 में राज्य सरकार और बीएसएफ को निर्णय लेने के निर्देश दिए थे, लेकिन प्रभावी निगरानी के अभाव में आज भी किसान अपनी खातेदारी जमीन के लिए भटक रहे हैं। साल 1992-93 में प्रदेश के चार जिलों बाड़मेर, जैसलमेर, बीकानेर और श्रीगंगानगर से लगती करीब 1070 किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भारत की तरफ तारबंदी की गई थी।
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तारबंदी और जीरो पॉइंट के बीच 100 मीटर का दायरा छोड़ा गया। इसी दायरे में चार जिलों के किसानों की जमीन फंस गई। अकेले बाड़मेर जिले के गडरारोड़, रामसर, चौहटन और सेड़वा तहसीलों के दो हजार किसानों की 11 हजार बीघा जमीन प्रभावित हैं।
बीएसएफ के नियम बन रहे बाधा
किसानों की मांग के बाद बीएसएफ ने खेती के लिए स्वीकृति तो दी है, लेकिन नियम ऐसे बना दिए हैं कि किसान उन्हें पूरा करने में असमर्थ हैं। खेती के लिए स्वीकृति दी, लेकिन जमीन पर तारबंदी और पानी की व्यवस्था को लेकर अलग-अलग नियम लागू कर दिए।
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साल 2013 में हम हाईकोर्ट भी गए, लेकिन इसके बाद भी कोई समाधान नहीं निकला। सरकार से मांग है कि या तो हमें कहीं और ज़मीन दी जाए या फिर बाजार दर के अनुसार मुआवज़ा मिले।
…रमेश गोदारा, सारला, प्रभावित किसान
किसानों की हजारों बीघा जमीन तारबंदी और जीरो पॉइंट के बीच फंसी हुई है। इन्हें मुआवजा और ज़मीन का हक दिलाने के लिए लोकसभा में मुद्दा उठाया था, लेकिन अभी तक मुआवजा नहीं मिला है। किसानों को बाजार दर के अनुसार मुआवजा मिलना चाहिए।
…कर्नल सोनाराम चौधरी, पूर्व सांसद, बाड़मेर-जैसलमेर
तहसील-प्रभावित गांव-प्रभावित काश्तकार-कुल प्रभावित जमीन
गडरारोड-13-447-2631.03
रामसर-10-394-1784.11
चौहटन-12-376-2582.07
सेड़वा-20-742-4467.00
साल 2013 में हाईकोर्ट का फैसला
जमीन का हक पाने के लिए किसान साल 2012 में सरकार से राहत न मिलने पर हाईकोर्ट गए। इसके बाद हाईकोर्ट ने 28 जनवरी 2013 को फैसला सुनाते हुए गृह मंत्रालय, राज्य सरकार और बीएसएफ को तीन महीने में किसानों की जमीन पर मौका रिपोर्ट तैयार करने और विचार करने को कहा। लेकिन 12 साल बाद भी किसानों को न तो दूसरी जगह जमीन मिली है और न ही कोई मुआवजा मिला।