करीब डेढ़ घंटे चले इस नाटक में दो परिवारों की तस्वीर पेश की गई—एक परिवार जहां बेटा-बहू बुजुर्ग मां-बाप की हर जरूरत का ख्याल रखते हैं, वहीं दूसरे घर में मां-बाप को अनदेखा किया जाता है। विवेक और रीना के परिवार में न कामकाजी बेटा समय देता है, न बहू, और न ही पोती। उपेक्षित दादा-दादी खुद को घर का बोझ मानने लगते हैं और आखिरकार घर छोड़कर चले जाते हैं। जब वे घर छोड़ते हैं तो बेटे विवेक और बहू रीना को अपनी गलती का एहसास होता है। पड़ोसी शिवम और विवेक की बहन नीलम समझाते हैं कि मां-बाप को न पैसे चाहिए, न सुख-सुविधाएं, उन्हें चाहिए तो सिर्फ बच्चों का साथ और सम्मान। यही संदेश नाटक के अंत में पूरे हॉल में गूंजा।
शानदार अभिनय और मंच सज्जा
नाटक में दादा-दादी का किरदार राज किशोर पाठक और डॉ. सुषमा सिंह ने निभाया। विवेक के रूप में श्रीकांत तिवारी, रीना के रोल में कविता तिवारी, रामनाथ मिश्रा बने विनायक श्रीवास्तव, अमित की भूमिका सौरभ रस्तोगी और नीलम का किरदार सोनालिका सक्सेना ने निभाया। ध्वनि संचालन हर्ष गौड़ और प्रकाश संचालन जसवंत सिंह ने किया। वहीं मंच पर संगीत का माहौल वायलिन पर सूर्यकांत चौधरी, कीबोर्ड पर अनुग्रह सिंह और गिटार पर विशेष कुमार ने सजाया।
गणमान्य लोगों की मौजूदगी
नाटक देखने पहुंचे एसआरएमएस ट्रस्ट के चेयरमैन देव मूर्ति, आशा मूर्ति, आदित्य मूर्ति, ऋचा मूर्ति के अलावा डा. एम.एस. बुटोला, डा. प्रभाकर गुप्ता, डा. अनुज कुमार, डा. शैलेश सक्सेना, डा. मनोज कुमार टांगड़ी, डा. रीटा शर्मा समेत शहर के कई गणमान्य लोग मौजूद रहे।