फर्जी दस्तावेजों से लिए टेंडर, कई कार्य स्वीकृत भी हो चुके
आगरा की ब्लैकलिस्टेड फर्म ने सिर्फ 5.28 करोड़ रुपये का एक बड़ा टेंडर ही नहीं लिया, बल्कि नगर निगम की करीब एक दर्जन निविदाओं में भाग लिया, जिनमें से कुछ में कंपनी का चयन भी हो गया था। यह घोटाला तब उजागर हुआ जब दस्तावेजों की सत्यता की जांच की गई और फर्जी अनुभव प्रमाण पत्रों का पता चला।
कंप्यूटर ऑपरेटर से लेकर बाबू और अफसरों तक की मिलीभगत की आशंका
मामले की जांच कर रहे अधिकारियों का मानना है कि फर्म की यह जालसाजी अकेले नहीं की गई, बल्कि इसमें निगम के कर्मचारियों और अधिकारियों की मिलीभगत भी संभव है। अब उन कर्मचारियों की भी भूमिका की जांच शुरू हो गई है, जो टेंडर प्रक्रिया से जुड़े थे।
नगरायुक्त ने दिए जांच के आदेश
नगर आयुक्त संजीव कुमार मौर्य ने स्पष्ट किया कि मामले की हर पहलू से जांच की जाएगी। फर्म द्वारा अब तक डाले गए सभी टेंडरों और स्वीकृत कार्यों की रिपोर्ट बनाई जा रही है। साथ ही यह भी जांच होगी कि इस फर्म ने किन-किन पार्टनरों या अन्य फर्मों के नाम से टेंडर में भाग लिया।
पहले भी ब्लैकलिस्टेड फर्म को मिला था काम
यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले 2018 में ‘आदित्य इंजीकाम’ नाम की फर्म को भी नगर निगम ने 14वें वित्त आयोग के अंतर्गत 2.27 करोड़ रुपये के कार्यों का ठेका दिया था। 25 अप्रैल 2018 को कार्यादेश जारी हुआ था, लेकिन फर्म ने काम शुरू तक नहीं किया। इसके बाद निर्माण विभाग ने फर्म को तीन बार नोटिस भेजा और जब कोई जवाब नहीं मिला तो 2 मार्च 2020 को फर्म को ब्लैकलिस्ट कर उसकी जमानत राशि जब्त कर ली गई।
अब नगर निगम की साख दांव पर
फर्जी अनुभव पत्रों और नियमों को ताक पर रखकर टेंडर देने की इस कार्रवाई से नगर निगम की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो गए हैं। अफसरों पर भी गाज गिर सकती है। यह मामला शासन तक पहुंचने की संभावना है और आने वाले दिनों में बड़ी कार्रवाई तय मानी जा रही है।