कार्यशाला में जोर इस बात पर दिया गया कि पराली को खेतों में जलाने की बजाय इसका उपयोग उद्योगों में ईंधन के रूप में किया जाए। अधिकारियों ने बताया कि बरेली मंडल में हर साल करीब 27 लाख मीट्रिक टन पराली पैदा होती है, जो खेतों में सड़ जाती है या जलाई जाती है, जिससे प्रदूषण बढ़ता है। अगर इस पराली से ब्रिकेट और पैलेट बनाए जाएं, तो इसका इस्तेमाल बिजली घरों, राइस मिल, प्लाईवुड फैक्ट्रियों और ईंट-भट्ठों में ईंधन के रूप में किया जा सकता है।
हरियाणा-पंजाब में पराली से बन रही 166 मेगावाट बिजली
हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के उदाहरण पेश करते हुए सुखवीर एग्रो (SAEL) कंपनी के सीएल शर्मा ने बताया कि उनकी राइस मिलों में पराली को जलाकर 166 मेगावाट तक बिजली पैदा की जा रही है। उन्होंने कहा कि इसके लिए बॉयलर में केवल 10 से 15 प्रतिशत बदलाव की जरूरत होती है और कोयले की तुलना में पराली अधिक प्रभावशाली साबित होती है। विद्या प्लाईवुड के संचालक अशोक अग्रवाल ने बताया कि वे पराली को अपने प्लांट में ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे प्लाईवुड की लागत में 10-15 फीसदी की बचत हो रही है।
विशेषज्ञों ने बताया-पराली से ऊर्जा उत्पादन की असीम संभावनाएं
कार्यशाला में मौजूद Samarth Mission के अधिकारी धर्मेश कुमार और तकनीकी विशेषज्ञ सुनील राय ने बताया कि पराली से बने ब्रिकेट और पैलेट की खपत बॉयलर बेस्ड फैक्ट्रियों, ईंट-भट्ठों और सीबीजी प्लांटों में की जा सकती है। इससे ना केवल उद्योगों की लागत घटेगी बल्कि पर्यावरण को भी राहत मिलेगी। कार्यशाला में UPNEDA के निदेशक इंद्रजीत सिंह भी वर्चुअली जुड़े और पराली प्रबंधन को सतत और लाभकारी बनाने के उपाय साझा किए। संभागीय खाद्य नियंत्रक मनिकंडन ए. ने बताया कि बरेली मंडल में पराली से ऊर्जा बनाने की असीम संभावनाएं हैं, लेकिन अफसोस कि अभी तक मंडल में एक भी ब्रिकेट या पैलेट बनाने की यूनिट नहीं है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस कार्यशाला के जरिए उद्योग और निवेशक आगे आएंगे और पराली प्रबंधन को व्यावसायिक रूप देंगे।
मंडलायुक्त बोलीं-पराली अब समस्या नहीं, संसाधन है
मंडलायुक्त सौम्या अग्रवाल ने कहा कि यह कार्यशाला सिर्फ चर्चा का मंच नहीं, बल्कि पराली से समाधान खोजने की दिशा में एक ठोस कदम है। उन्होंने उद्योगों, स्वयं सहायता समूहों और पराली एकत्र करने वालों से अपील की कि वे इस दिशा में मिलकर काम करें ताकि पराली प्रदूषण की नहीं, प्रगति की पहचान बने।