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बरेली

उर्स-ए-रज़वी के मंच से उठी आला हज़रत कॉरिडोर बनाने की मांग, उलेमा बोले– तरक्की की खुलेगी नई राह

उर्स-ए-रज़वी के दूसरे दिन मंगलवार को इस्लामिया मैदान में नामूस-ए-रिसालत, आपसी सौहार्द और मसलक-ए-आला हज़रत कॉन्फ्रेंस का आयोजन हुआ। लाखों जायरीन और उलेमा की मौजूदगी में देशभक्ति, भाईचारे और इंसानियत का पैगाम दिया गया।

बरेलीAug 19, 2025 / 09:24 pm

Avanish Pandey

मसलक-ए-आला हज़रत कॉन्फ्रेंस में मौजूद उलेमा (फोटो सोर्स: पत्रिका)

बरेली। उर्स-ए-रज़वी के दूसरे दिन मंगलवार को इस्लामिया मैदान में नामूस-ए-रिसालत, आपसी सौहार्द और मसलक-ए-आला हज़रत कॉन्फ्रेंस का आयोजन हुआ। लाखों जायरीन और उलेमा की मौजूदगी में देशभक्ति, भाईचारे और इंसानियत का पैगाम दिया गया।
कॉन्फ्रेंस की सदारत दरगाह प्रमुख हज़रत सुब्हान रज़ा खान (सुब्हानी मियां) और सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रज़ा क़ादरी (अहसन मियां) ने की, जबकि निगरानी सैय्यद आसिफ मियां ने संभाली। वहीं मंगलवार शाम झारखंड के गवर्नर संतोष गंगवार की ओर से दरगाह पर चादर पेश की गई। वहीं, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की ओर से सपा नेताओं ने चादर चढ़ाकर हाज़िरी दी।

उलेमा ने दिया देशभक्ति का संदेश

कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए मुफ्ती सलीम नूरी ने कहा कि मज़हब और मसलक का सच्चा वफादार वही है, जो अपने मुल्क का सच्चा वफादार हो। वहीं मुफ्ती सलीम बरेलवी ने कहा कि दुनिया के तमाम देशों में सबसे खूबसूरत और बेहतरीन संविधान हिंदुस्तान का है, जिसमें हर धर्म और हर नागरिक को बराबरी का हक और पूरी आज़ादी मिली हुई है। उन्होंने कहा कि मुल्क से मोहब्बत और उसकी तरक्की के लिए काम करना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। राजनीतिक पार्टियां आती-जाती रहती हैं, लेकिन मुल्क कायम है और रहेगा।

कुल शरीफ की रस्म अदा

दूसरे दिन मुफस्सिर-ए-आज़म हिंद, रेहान-ए-मिल्लत और मुफ्ती-ए-आज़म हिंद के कुल शरीफ की रस्म भी अदा की गई। देर रात यह रस्म करीब 1:40 बजे सम्पन्न हुई। कारी सखावत मुरादाबादी ने इमामों से अपील की कि जुमे की खुतबे में भाईचारा और सौहार्द पर जोर दें। कारी यूसुफ रज़ा सम्भली ने समाज में फैल रही बुराइयों—नशाखोरी, सूद, बलात्कार और फिजूलखर्ची—से बचने की नसीहत दी। मौलाना जाहिद रज़ा और मुफ्ती बशीर उल क़ादरी ने बरेली में आला हज़रत कॉरिडोर बनाए जाने की मांग उठाई। नेपाल, मॉरीशस और अन्य देशों से आए उलेमा ने भी आला हज़रत को खिराज-ए-अकीदत पेश किया।

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