जैसे ही ठगी प्रकरण में सूर्यकांत का नाम सामने आया, भाजपा के स्थानीय और प्रदेश नेतृत्व ने तत्काल प्रभाव से दूरी बना ली। भाजपा ने स्पष्ट किया है कि पार्टी भ्रष्ट और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त किसी भी नेता को संरक्षण नहीं देगी।
अमर ज्योति यूनिवर्स निधि लिमिटेड: मोटे मुनाफे का लालच, फिर गायब
शशिकांत मौर्य (निदेशक) और सूर्यकांत मौर्य (एजेंट) द्वारा संचालित इस कंपनी ने बरेली और बदायूं जिले में लगभग 15 हजार लोगों से निवेश कराया। कंपनी ने “दोगुना रिटर्न”, “गोल्ड स्कीम”, “फिक्स्ड मंथली इनकम” जैसी स्कीमों के नाम पर लोगों से लाखों-करोड़ों रुपये जमा कराए। लेकिन कुछ महीनों बाद ही कंपनी का ऑफिस बंद हो गया और सभी संचालक फरार हो गए।बदायूं कोतवाली में जिनके खिलाफ मुकदमा दर्ज है, वे हैं:
शशिकांत मौर्य – निदेशक
सूर्यकांत मौर्य – भाई व एजेंट
अमित सिंह – मैनेजर
सुनील बाबू मौर्य – एजेंट
अन्य अज्ञात सहयोगी
सगे साढ़ू से भी ठगी: डेढ़ करोड़ का चेक बाउंस
संतोष मौर्य, जो बदायूं निवासी और सूर्यकांत के सगे साढ़ू हैं, उन्होंने आरोप लगाया कि उन्होंने हाल ही में अपनी जमीन बेचकर परिवार के साथ कुल ढाई करोड़ रुपये निवेश किए। भरोसे के कारण उन्होंने पैसा सीधे सूर्यकांत को सौंपा। जब पैसे की मांग की तो आरोपी ने डेढ़ करोड़ रुपये का चेक यह कहकर दिया कि कुछ दिन बाद बैंक में जमा करें, लेकिन खाते में रकम नहीं थी।संतोष के अनुसार, “सूर्यकांत ने न सिर्फ मुझे ठगा बल्कि मेरी ससुराल वालों को भी लाखों रुपये का चूना लगाया।”
दूसरों के नाम पर बनाई संपत्ति, SIT कर रही जांच
बरेली और बदायूं में पुलिस की विशेष जांच टीम (SIT) द्वारा इस हाई-प्रोफाइल मामले की जांच की जा रही है। जांच में खुलासा हुआ है कि पांच साल पहले से ही मौर्य बंधु इस फर्जीवाड़े की योजना बना रहे थे।इन्होंने नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद समेत अन्य शहरों में दूसरे रिश्तेदारों और परिचितों के नाम पर प्रॉपर्टी खरीदी।

पहले ही दिवालिया घोषित कर फरार होने की थी तैयारी
उद्देश्य था कि जब कंपनी डिफॉल्ट करे और वे कानूनी शिकंजे में आएं तो उनके नाम पर कोई संपत्ति न हो जिसे ज़ब्त किया जा सके। इसी वजह से अन्य शहरों में रिश्तेदारों के नाम पर प्रापर्टी रजिस्टर्ड कराई गई।हाल ही में इन्होंने एनसीएलटी कोर्ट में खुद को दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया भी शुरू की। बरेली में कंपनी के कई निवेशक सूर्यकांत की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। SIT फिलहाल उसके सहयोगियों, एजेंटों और लाभार्थियों की तलाश में जुटी है। कई निवेशकों ने खुले तौर पर आरोप लगाया है कि भाजपा से जुड़े होने के कारण सूर्यकांत के खिलाफ पुलिस ने शुरुआती कार्रवाई में ढिलाई बरती। हालांकि अब जब मामला बढ़ गया और पार्टी ने भी दूरी बना ली है, तो जांच की रफ्तार तेज होने की उम्मीद है।