बाबा गोरखनाथ ने सदैव जवान रहने वाला फल दिया
प्रचलित कहानी के अनुसार, उज्जैन के महाराज
भर्तृहरि की तीन पत्नियां थी। जिसमें तीसरी पिंगला पर महाराज अशक्त थे। ऐसे ही एक दिन तपस्वी गुरु गोरखनाथ उज्जैन पहुंचे। महाराज भर्तृहरि गोरखनाथ महाराज का खूब आदर सत्कार किया। इससे खुश होकर बाबा गोरखनाथ ने महाराज को एक अद्भुत फल दिया। साथ ही यह भी कहा कि इस फल के खाने से वह सदैव जवान बने रहेंगे।
महाराज भर्तृहरि ने अपनी रानी पिंगला को दिया अद्भुत फल
बाबा गोरखनाथ के जाने के बाद महाराज भर्तृहरि ने फल अपनी रानी पिंगला को दे दिया। फल पाकर पिंगला ने सोचा कि अगर वो यह फल खा लेगी तो सदैव सुंदर और जवान बनी रहेगी। रानी ने सोचा क्यों न यह फल वह अपने प्रेमी कोतवाल दे दे। जिससे वह एक लंबे समय तक उसकी इच्छाओं की पूर्ति कर सकेगा। फिर क्या था, रानी ने चमत्कारी फल कोतवाल को दे दिया।
दिया फल वापस पाकर महाराजा हुए हैरान
उधर वह कोतवाल एक वैश्या से प्रेम करता था। उसने उस चमत्कारी फल को वैश्या को दे दिया। अब वैश्या ने सोचा कि यदि वह जवान और सुंदर बनी रहेगी तो उसे यह काम हमेशा करना पड़ेगा। इस फल की सबसे अधिक जरूरत राजा को है। यह फल मैं राजा को दे देती हूं। राजा हमेशा जवान रहेंगे तो प्रजा की लम्बे समय तक सेवा करेंगे। यह सोचकर उसने फल राजा को दे दिया। राजा ने जैसे ही वह फल देखकर हैरान रह गए।
छानबीन की तो खुला राज, टूट गया दिल
अब महाराज ने जब पूरी छानबीन की तो पता चला कि जिस रानी पिंगला को वह सबसे अधिक प्यार करते हैं, वह उसे धोखा दे रही है। इस जानकारी के बाद उनका दिल टूट गया। महाराज भृतहरि के मन में वैराग्य जाग गया। तुरंत उन्होंने निर्णय लेकर अपना सारा राज्य विक्रमादित्य को सौंपकर जंगल चले गए। गुरु गोरखनाथ के शिष्य बन संन्यास ले लिया। उज्जैन की एक गुफा में उन्होंने 12 वर्षों तक तपस्या की। यह गुफा आज भी दर्शनीय मानी जाती है।
भर्तृहरि थे एक बड़े कवि, रचा था तीन शतक
भर्तृहरि संस्कृत मुक्तक काव्य परम्परा के अग्रणी कवि हैं। भर्तृहरि ने तीन शतक की रचना की थी। जिसमें एक वैराग्य पर वैराग्य शतक है। श्रृंगार शतक और नीति शतक थी। यह तीनों आज भी उपलब्ध हैं।
अलवर है महाराज भर्तृहरि की समाधि
महाराज भर्तृहरि का अलवर से क्या कनेक्शन है, जानें। बताया जाता है कि महाराज भर्तृहरि का आखिरी वक्त राजस्थान में बीता। उनकी समाधि अलवर (राजस्थान) के जंगल में है। उसके सातवें दरवाजे पर एक अखण्ड दीपक जलता रहता है। उसे भर्तृहरि की ज्योति माना जाता है। भर्तृहरि महान शिवभक्त और सिद्ध योगी थे। स्थानीय लोग इसे भृतहरि के उसी नाम से पुकारते हैं, जिस नाम से राजा से संत बने भर्तृहरि को जाना जाता है।