नीला ड्रम कांड में 8 साल के बेटे का बड़ा खुलासा: अंकल ने मुंह दबाया..मम्मी ने पकड़े पांव, मारने के बाद बैठे रहे
राजस्थान के किशनगढ़बास कस्बे में पति की हत्या करके लाश नीले ड्रम में डालने के मामले में उसके ही 8 साल के बेटे ने बड़ा खुलासा किया है। बेटे ने बताया कि हत्या वाली रात को अंकल और मम्मी ने क्या- क्या किया?
अलवर। खैरथल-तिजारा जिले के किशनगढ़बास कस्बे की आदर्श कॉलोनी में नीले ड्रम हत्याकांड मामले में मृतक हंसराम के आठ साल के बच्चे ने बड़ा खुलासा किया है। मासूम बेटे ने उस रात की आंखों देखी कहानी बयां की है।
उधर, पुलिस ने हत्या के मामले में मृतक की पत्नी लक्ष्मी व प्रेमी जितेंद्र को गिरफ्तार कर लिया। पोस्टमार्टम के बाद परिजन हंसराम के शव को गांव ले गए। लक्ष्मी के 8 वर्षीय बेटे और 4 वर्षीय बेटी को परिजन को सौंप दिया है। वहीं दो वर्षीय बेटी को अब लक्ष्मी के साथ जेल में ही रहना पड़ेगा।
बेटे ने जो बताया उसी की जुबानी-
मैंने पूछा- अंकल पापा को ड्रम में क्यों डाल रहे हो ? मुझसे कहा- मोबाइल देख…
15 अगस्त की रात जितेंद्र अंकल कमरे में आए। पापा और अंकल ने शराब पी। फिर उनमें झगड़ा हो गया। मम्मी ने पापा को पकड़ लिया।
झगड़ा करते-करते पापा गिरे और सो गए। इसके बाद अंकल ने पापा का मुंह दबाया और मम्मी ने उनके पैर पकड़े। मारने के बाद वहीं बैठे रहे।
इसके बाद मैं सो गया। सुबह उठा तो देखा कि पापा बेड पर हैं और उनके नाक से खून निकल रहा था।
थोड़ी देर बाद जितेंद्र अंकल आए और कहा मोबाइल ले और देख। जब सू-सू के लिए बाहर आया तो देखा अंकल पापा को ड्रम में डाल रहे थे। मैंने पूछा, अंकल पापा को ड्रम में क्यों डाल रहे हो।
उन्होंने कहा बेटा तेरा पापा नहीं रहा। तूने रात को देखा पापा लड़ाई कर रहा था। तेरा पापा तुझे और मम्मी को मारने की धमकी दे रहा था। तो मुझे इसे मजबूरन मारना पड़ा।
जितेंद्र अंकल ने कहा कि तू क्यों आ गया, तुझे तो फोन दिया था। बच्चे ने बताया कि पापा को सुबह करीब 9:30 बजे ड्रम में डाला था।
नाजुक मन पर गहरा असर
क्राइम सीन बच्चों के नाजुक मन पर गहरा असर डालते हैं। डर, असुरक्षा और बार-बार वही दृश्य याद आना जैसी प्रतिक्रियाएं सामान्य हैं। छोटे बच्चे अपराध को समझ नहीं पाते, पर हिंसा देखकर उनके मन में स्थायी भय, चिड़चिड़ापन या नींद संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। बड़े बच्चों में आक्रामकता, असामाजिक व्यवहार या दूसरों पर अविश्वास भी विकसित हो सकता है। ऐसे समय अभिभावकों व परिचितों सहित पुलिस और प्रशासन का संवेदनशील व्यवहार और खुलकर बातचीत करना बेहद जरूरी है। -डॉ. अखिलेश जैन, मनोरोग विशेषज्ञ
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