मंदिर का रावण से है संबंध: प्राचीन जैन ग्रंथों में उल्लेख के अनुसार सोने की लंका बनाने के लिए रावण ने अलवर में 52 जिनालय मंदिर का निर्माण कर पार्श्वनाथ की आराधना की, जिससे उसे पारस पत्थर प्राप्त हुआ तथा अलवर से सोना ले जाकर सोने की लंका बनाई। शास्त्रों में लेख है कि लंकेश रावण ने कभी कालक्रम में यहां भगवान पार्श्वनाथ की पूजा की थी। इस बात का संकेत यहां के रावण देवरा गांव में खंडहरों से प्राप्त जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति से मिलता है। यह मूर्ति अति प्राचीन है, जिसे बाद में रावण देवरा अलवर परकोटे के अंदर बीरबल के मोहल्ले में लाकर विराजमान किया गया। बताया जाता है कि अलवर के पूर्व महाराज जयसिंह ने भी इस किवदंती के आधार पर रावण देहरा में सोने की खोज कराई थी, लेकिन सफलता नहीं मिली।
मंदिर से जुडे़ कांति जैन बताते हैं कि मंदिर में विराजमान प्रतिमाएं रावण देवरा से लाकर बीरबल का मोहल्ला में विराजमान की गई हैं। संवत 1211 व संवत 1645 के निकले शिलालेखों से ज्ञात होता है। मंदिर की प्रतिष्ठा जिन सिंह सूरीपट्टे जिनचंद्र सूरी की विद्यमानता में उनके आदेश से वाचक रंगकलश सूरी ने की थी। पार्श्वनाथ स्वामी के तीर्थ स्थानों में अलवर भी अतिशयी और उल्लेखनीय तीर्थक्षेत्र है।