सीटीएच के पुनर्सीमांकन का आधार वैज्ञानिक
केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा है कि सीटीएच के पुनर्सीमांकन का आधार वैज्ञानिक मूल्यांकन और बाघों के संरक्षण की आवश्यकताओं पर केंद्रित है, न की खनन को छूट देने के उद्देश्य से प्रेरित है। इस पर उठाए जा रहे सवाल राजनीति से प्रेरित हैं। जो लोग यह कह रहे हैं कि यह प्रक्रिया खनन को छूट देने के लिए है, उन्हें या तो इस प्रक्रिया के वैज्ञानिक आधार का बोध नहीं है या फिर वह जानबूझकर जनता में भ्रम फैलाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का प्रयास कर रहे हैं। यादव ने कहा कि यह प्रक्रिया पूरी तरह से वैज्ञानिक आधार और बाघों के संरक्षण की वास्तविक आवश्यकताओं पर आधारित है।92 खाने बंद हो चुकी
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 92 खानों को बंद कर दिया गया था। यह सभी खानें सरिस्का सीटीएच से एक किमी दायरे में थी।
बाघों का गला क्यों घोंटा जा रहा
सरिस्का टाइगर रिजर्व के नए सीटीएच के ड्राट में खान संचालकों को पूरा लाभ पहुंचाया गया है। प्रदेश व केंद्र सरकार को टाइगर व पर्यावरण की चिंता नहीं है। जो खानें बंद हो गई हैं, उन्हें दोबारा चलाने के लिए बाघों का गला क्यों घोंटा जा रहा है? सरिस्का अलवर की नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश की पहचान है। सरिस्का को बचाने के लिए सरकार अपने स्वार्थ त्यागे। — टीकाराम जूली, नेता प्रतिपक्षपारिस्थितिक दृष्टिकोण
पर्यावरणविदों का तर्क है कि सीमा पुनर्निर्धारण से वन्यजीवों के सुरक्षित क्षेत्र में मानवीय हस्तक्षेप बढ़ेगा, जिससे बाघों की गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। उनका मानना है कि वर्तमान सीमाएं वैज्ञानिक अध्ययन और पारिस्थितिक दृष्टिकोण के आधार पर तय की गई थीं, ऐसे में इसमें बदलाव से वन्यजीव संरक्षण की दिशा में वर्षों की मेहनत पर पानी फिर सकता है।वन्यजीवों को नुकसान, प्रस्ताव निरस्त होना चाहिए : गहलोत
पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने एक्स पर लिखा कि सरिस्का टाइगर रिजर्व बाघों के संरक्षण एवं पुनर्वास का अद्वितीय उदाहरण है। करीब 20 साल पहले यहां बाघों की संख्या शून्य हो गई थी। तत्कालीन यूपीए सरकार ने बाघों के लिए विशेष अभियान चलाया। सरिस्का के वन क्षेत्र की सीमा व सुरक्षा को बढ़ाया, जिसके कारण वर्तमान में यहां लगभग 50 बाघ आबाद हो चुके हैं। अब पता लग रहा है कि राज्य सरकार सरिस्का वन क्षेत्र के दायरे को कम करना चाहती है, जिससे करीब 50 खदानें पुन: शुरू हो सकें…जंगल के निकट इन खदानों को शुरू करने का नुकसान यहां के वन्यजीवों को उठाना पड़ेगा। केन्द्र व राजस्थान की सरकारों में वन एवं पर्यावरण मंत्री अलवर से ही हैं, इसलिए उन्हें इस मुद्दे पर अधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता है। राजस्थान में भाजपा सरकार आने के बाद से ही पर्यावरण एवं वन्यजीवों के प्रतिकूल कई प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी जा रही है। यह प्रदेश के भविष्य के लिए उचित नहीं है। ऐसी योजना को अविलंब रद्द करना चाहिए। –पूर्व सीएम अशोक गहलोत